सेदोका
01.
कांक्रीट जाल
अंधाधुंध कटाई
पेड़ बने लाचार
करें आभार
छायादार दरख्त
प्रकृति उपहार ।
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02.
आद्य दिवस
आषाढ़ का प्रवेश
भाव हुए व्याकुल
दिखे जो मेघ
प्रेम का अतिरेक
भेजे यक्ष संदेश ।
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03.
बीता आषाढ़
मेघ हुए निठुर
सूखे पड़े हैं कुएँ
दुःखी नदिया
जल की क्षीण धार
ओह.. हुई लाचार ।
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04.
सघन वन
बरसात मौसम
पाट के सम्मोहन
फँसे नयन
उल्टे पानी की धार
निसर्ग पे निहाल ।
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05.
आद्य आषाढ़
वर्षा का जन्मोत्सव
छाये मेघ अपार
सुधा की बूंदें
वसुधा में करतीं
शीतल का संचार ।
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06.
आया पावस
कलकल करती
फूट पड़ी धाराएँ
गिरि शिखर
तोड़ चली चट्टानें
बह उठा निर्झर ।
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□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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