हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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शनिवार, 10 अगस्त 2019

हिन्दी के प्रथम हाइकुकार स्व. प्रो. आदित्य प्रताप सिंह जी के हाइकु


हाइकुकार 

प्रो. आदित्य प्रताप सिंह 

हाइकु


यह वजूद 
पकड़ते रहिये 
पारे की बूँद ।
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हँसता जन्मा
रोता सानंद जिया 
हँसता गया ।
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बुझी खिड़की 
धुँआता दियना रे
बिखरे गेशू ।
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तितली कहे 
मकड़ी सुने और
गुने मयूरी ।
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पत्तों पे बूँद 
माँ-दूध पे पलता 
नया वजूद ।
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तितली दुखी 
पारदर्शी जाल रे 
सुखी मकड़ी ।
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प्रतीक्षा फूली
दरवाजे के पास 
पीली कनेरी ।
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□  प्रो. आदित्य प्रताप सिंह 
चिरहुला, रीवा (म.प्र.)
पिन - 486001

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