हाइकुकार
प्रो. आदित्य प्रताप सिंह
हाइकु
यह वजूद
पकड़ते रहिये
पारे की बूँद ।
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हँसता जन्मा
रोता सानंद जिया
हँसता गया ।
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बुझी खिड़की
धुँआता दियना रे
बिखरे गेशू ।
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तितली कहे
मकड़ी सुने और
गुने मयूरी ।
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पत्तों पे बूँद
माँ-दूध पे पलता
नया वजूद ।
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तितली दुखी
पारदर्शी जाल रे
सुखी मकड़ी ।
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प्रतीक्षा फूली
दरवाजे के पास
पीली कनेरी ।
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□ प्रो. आदित्य प्रताप सिंह
चिरहुला, रीवा (म.प्र.)
पिन - 486001
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