हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शुक्रवार, 21 मई 2021

~•~ हाइकु कवयित्री रति चौबे जी के हाइकु ~•~

हाइकु कवयित्री

रति चौबे 


हाइकु 

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मिट्टी का दिया

अंधेरी बस्तियों में

जीवित रहा ।


चाँद सरीखी

घटती जा रही हूँ 

हिस्सों में बँटी ।


बिका ईमान

भावनाएं आहत

चरम सीमा ।


मुखौटे ढेरों

अमृत संग विष

घूमें बैखौफ ।


बाज़ार हँसा

हर चीज बिकाऊ है

जेब हो भरी ।


विकल नेत्र

संजीवनी को ढूंढे

मौत मुस्काये ।


हताश जन

मगरूर है मौत

निर्जीव मन ।


शवों को लादे

कांधे हुए वाहन 

खोजें निगाहें ।


धरा तो अब

हो गई निपूती सी

अनाथ वृक्ष ।


शब्द मचले

वेदनाएं उमड़ी

मैं उठ बैठी ।


बसंत गया

उपेक्षित कोंपलें

विरहाग्नि में ।


इंतजार में

खोजती बूढ़ी आंखें 

गिनती सांसें । 


एक झिड़की 

प्यार दुलार भरी 

संभल गई ।

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□  रति चौबे

परशुराम वाटिका, नागपुर 

(महाराष्ट्र)

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