हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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शनिवार, 31 अगस्त 2019

हाइकु कवयित्री मंजू सरावगी "मंजरी" जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

मंजू सरावगी "मंजरी"

हाइकु 


1.
आंखों में आस
अपनों की चाहत
ढूंढता मन ।

2.
पंछी सा मन
उड़ता जाता रहा
ठौर की चाह ।

3.
दानों की आस
कौवे भी मड़राते
कोई आ जाता ।

4.
अपने छूटे
कुर्सी का क्या करना
सपने टूटे ।

5.
पंछी का बसेरा
भोर होते सन्नाटा
अकेलापन ।
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□  मंजू सरावगी "मंजरी"

रायपुर (छतीसगढ़)

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