हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 4 अगस्त 2019

हाइकुकार ऋतुराज दवे जी के हिन्दी हाइकु

हाइकुकार 

ऋतुराज दवे

हाइकु 


(1)
टूटे संस्कार 
शिक्षा की नींव हिली 
गिरा समाज ।

(2)
रोये काग़ज़ 
जिद्द ने लिख डाली 
महाभारत ।

(3)
कजले नैन 
साँझ के झुरमुट 
झाँकती रैन ।

(4)
रूप सँवारे 
रजनी के जुडे में 
टंके सितारे ।

(5)
आस्था को मान 
विश्वास का सहारा
शिला में प्राण ।

(6)
सावन"झड़ी 
मेघों को जैसे पड़ी 
डाँट या छड़ी ।

(7)
काग़ज़ काया 
वक़्त लगाए तीली
अहं जलाया ।

(8)
झरना हँसा  
बरसात का स्पर्श 
महकी धरा ।

(9)
पूनम रात 
चाँदनी का झरना 
नहायी धरा ।

(10)
अटकी साँसें   
कंक्रीट के जंगल 
भटकी धूप ।

(11)
जीवन साँझ 
स्मृतियों के बादल
मन आकाश ।

(12)
बुद्धि थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र ।

(13)
जहर हवा
शहर मिलावटी
वृक्ष है दवा ।

(14)
छुपी मस्तियाँ 
कड़वे नीम नीचे 
मीठी स्मृतियाँ ।

(15)
बादलों संग
खेले आँख मिचौली
"धूप" निगोड़ी ।

□  ऋतुराज दवे
राजसमंद (राजस्थान)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH