हाइकुकार
ऋतुराज दवे
हाइकु
(1)
टूटे संस्कार
शिक्षा की नींव हिली
गिरा समाज ।
(2)
रोये काग़ज़
जिद्द ने लिख डाली
महाभारत ।
(3)
कजले नैन
साँझ के झुरमुट
झाँकती रैन ।
(4)
रूप सँवारे
रजनी के जुडे में
टंके सितारे ।
(5)
आस्था को मान
विश्वास का सहारा
शिला में प्राण ।
(6)
सावन"झड़ी
मेघों को जैसे पड़ी
डाँट या छड़ी ।
(7)
काग़ज़ काया
वक़्त लगाए तीली
अहं जलाया ।
(8)
झरना हँसा
बरसात का स्पर्श
महकी धरा ।
(9)
पूनम रात
चाँदनी का झरना
नहायी धरा ।
(10)
अटकी साँसें
कंक्रीट के जंगल
भटकी धूप ।
(11)
जीवन साँझ
स्मृतियों के बादल
मन आकाश ।
(12)
बुद्धि थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र ।
(13)
जहर हवा
शहर मिलावटी
वृक्ष है दवा ।
(14)
छुपी मस्तियाँ
कड़वे नीम नीचे
मीठी स्मृतियाँ ।
(15)
बादलों संग
खेले आँख मिचौली
"धूप" निगोड़ी ।

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