हाइकु कवयित्री
क्रांति
हाइकु
बिजली गिरी
झंकृत कर गयी
दिल के तार ।
दस्तक देती
शीतल सी हवाएं
मन मोहती ।
पत्थर बन
तोड़ना नहीं कभी
शीशे का दिल ।
मेरे जज़्बात
बेकाबू से लगते
दिन व रात ।
शांत बगिया
चिड़ियों की चहक
खिलता मन ।
वर्षा की बूँदें
भीगता रहा तन
झूमे रे मन ।
मेघ गर्जन
रिमझिम बारिश
शीतल मन ।
भूतल हरा
खिलखिलाता मन
मिटते तम ।
रोली चंदन
प्यार भरा त्यौहार
रक्षाबंधन ।

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