हाइकु कवयित्री
डाॅ. सुरंगमा यादव
हाइकु
हवा ने छेड़ा
सहम तो गयी लौ
हार न मानी ।
नारी की व्यथा
जीवन और मृत्यु
दोनों ही ख़फा ।
मन मकान
यादों ने कर लिया
अपने नाम ।
रेत की भीत
ढह जायेगी देह
रहेगी प्रीत ।
असंख्य तारे
खोया न जाने कहाँ
भाग्य का तारा ।
अमा की रात
चन्द्रमुख अपना
छिपाये निशा ।
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□ डॉ. सुरंगमा यादव
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