हाइकु कवयित्री
सीमा बंग
हाइकु
बूढ़ा है पेड़
अनमोल रिश्तों की
थामे है डोर ।
दिल-गुबार
बहा नैनों के द्वार
बनके बाढ़ ।
काले बादल
झमाझम बरसे
तप्त किसान ।
पिता का साया
वट जैसा सुदृढ़
देता संबल ।
कर्म के बीज
मेहनत से सींचे
हो फल मीठे ।
मन का दीया
हटाता है अँधेरा
भरे उजाला ।
प्यासी धरती
बारिश को तरसे
फसलें सूखी ।
मेघों के द्वार
बारिश का श्रृंगार
गाए मल्हार ।
नारी की शक्ति
दामिनी सी कडकी
थर्राया जहाँ ।
माँ का आँचल
ब्रह्माण्ड का स्वरूप
देता जीवन ।
दिल के दर्द
माँ छिपाये रखती
बाँटती खुशी ।
सृष्टि का स्वर्ग
माँ की गोद में मिले
अटूट प्यार ।
सृष्टि का सार
माँ बिन सूना जग
मिले ना चैन ।

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