हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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शनिवार, 3 अगस्त 2019

हाइकु : सीमा बंग

हाइकु कवयित्री 

सीमा बंग 

हाइकु 


बूढ़ा है पेड़
अनमोल रिश्तों की
थामे है डोर ।

दिल-गुबार
बहा नैनों के द्वार
बनके बाढ़ ।

काले बादल
झमाझम बरसे
तप्त किसान ।

पिता का साया
वट जैसा सुदृढ़
देता संबल ।

कर्म के बीज
मेहनत से सींचे
हो फल मीठे ।

मन का दीया
हटाता है अँधेरा
भरे उजाला ।

प्यासी धरती
बारिश को तरसे
फसलें सूखी ।

मेघों के द्वार
बारिश का श्रृंगार
गाए मल्हार ।

नारी की शक्ति
दामिनी सी कडकी
थर्राया जहाँ ।

माँ का आँचल
ब्रह्माण्ड का स्वरूप
देता जीवन ।

दिल के दर्द
माँ छिपाये रखती
बाँटती खुशी ।

सृष्टि का स्वर्ग
माँ की गोद में मिले
अटूट प्यार ।

सृष्टि का सार
माँ बिन सूना जग
मिले ना चैन ।

□ सीमा बंग
नागपुर (महाराष्ट्र)

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