हाइकु कवयित्री
डॉ. सुरंगमा यादव
हाइकु
आसमान में
घटाओं का पहरा
सूर्य सहमा ।
घटाओं का पहरा
सूर्य सहमा ।
बरखा आयी
कोयल की विदा का
संदेशा लायी ।
गरीबी भार
आसमान के संग
टपकी छत ।
वक्त की धूप
कुम्हला ही जाता है
चीजों का रूप ।
चीजों का रूप
दिखता कुछ ऐसा
भाव हो जैसा ।
सूर्य ने ओढ़ा
मेघों का आवरण
छिपाये तन ।
गुलाब जैसे
सुधियों की सुरभि
सदा महके ।
बड़े विचित्र
मन- कैनवास पे
यादों के चित्र ।
मन फिरता
क्षितिज को ढूँढता
पायेगा कहाँ ।
यादें थीं सोयी
सावनी फुहारों ने
आ के जगाया ।
मेघों को देखा
भीगने के डर से
सूरज भागा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें