हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

समसामयिक हाइकु संचयन (अक्टूबर - 2019)


🎋 हाइकु मंच छत्तीसगढ़ 🎋

समसामयिक हाइकु संचयनिका

अक्टूबर 2019 के श्रेष्ठ हाइकु

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जीने की राह
सरल है उपाय
सेवा का भाव ।

□ श्रवण चोरनेले "श्रवण"

दूषित शिक्षा
छिनता बचपन
रोता खिलौना । 

□ मनीलाल "नवरत्न"

रात्रि प्रहर
छप्पर से छाँकती
चन्द्र किरणें ।

□ सुकमोती चौहान "रुचि"

चाँद के अश्रु 
कमल के पत्रों ने
सहेजे बिन्दु ।

□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

मेघा बरसी
भीगी सारी धरती
फसल उगी ।

□ सुशीला साहू "शीला"

अमृत वर्षा 
शीतल सी यामिनी 
स्निग्ध चाँदनी ।

□ सुधा शर्मा

आज पूर्णिमा 
खीर के भोग पर
सुधा अणिमा ।

□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

शशि बिखेरे 
शुभ्र धवल आभा
हर्षित धरा ।

□ वृंदा पंचभाई

आँखें ज्यों रोतीं
दर्पण पे उगते
आँसू के मोती ।

□ अमन चाँदपुरी

तप्त हृदय
लुटता  हुआ प्यार
मूक दर्शक ।

□ सुनील गुप्ता

साँझ जो हुई
अस्ताचल में चले
सुस्ताने रवि ।

□ सुशीला साहू "शीला"

मैं सुहागन
दोनों चाँद बसते
मेरे नयन ।

□ मंजू सरावगी "मंजरी"

खिले सुमन
पिया संग जीवन
महका मन ।

□ वृंदा पंचभाई

संकरा रास्ता 
खाई सटा पहाड़
पथिक तन्हा ।

□ सुनील गुप्ता

धुरी के बिना
घुम रही है पृथ्वी
पीसेंगे सभी ।

□ सुशीला साहू "शीला"

अस्त्र की होड़
विकास या विनाश
अंधी ये दौड़ । 

□ मनीभाई नवरत्न

मृदंग थाप
नाच रही मगन
दिव्यांग बाला ।

□ क्रान्ति

शोषण हुआ
संवेदनाएं जागीं
पोषण हुआ ।

□ सुनील गुप्ता 


रंगोली सजी
पुलकित धरती
मुस्करा उठी ।

□ सुजाता मिश्रा

तम हरता
स्वयं जल दीपक
प्रेरणा देता ।

□ मंजू सरावगी "मंजरी"

पुष्प महके 
दीप करे रौशन
धनतेरस ।

□ मधु गुप्ता "महक"

रंगोली सजी
मेरे मन आंगन 
सजे जीवन ।

□ वृंदा पंचभाई

अमा की रात 
दीपक लड़ रहा
तम के साथ ।

□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

करता जंग 
घना तिमिर संग 
दीप अनंग ।

□ सुधा शर्मा

भाई का प्यार 
रोली और अक्षत
दमके भाल । 

□ स्वाति "नीरव"

ताजी सब्जियाँ
मिले गाँव के हाट
जैविक खाद ।

□ डाॅ. पुष्पा सिंह "प्रेरणा"

बेसूध गंध
हवा में बिखेरता
खेत का धान ।

□ सुशीला साहू "शीला"

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