हाइकुकार
भैरव प्रसाद
हाइकु
डूबता देश
बगुलों ने बदला
अपना वेश !
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नन्हा सा द्वीप
तैर रहा कछुआ
मन के बीच !
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मन के बिल
शक का छछूंदर
फंसा अंदर !
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प्यासा पीपल
झाँकता कूप-जल
पपीहा वन !
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प्रेम सुगंध
उड़ गयी तितली
इंद्रधनुष !
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टूटी टहनी
कुछ टूटा भीतर
तुम क्या जानो ?
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मुँह मरोड़
बैठी है पिछवाड़े
खिन्न खटिया !
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गेहूँ गरीब
पक रहीं रोटियां
तपती धूप !
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गेहूँ फकीर
फटी छाती लेटा है
मंडी की भीड़ !
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जरा सी बात
लाल हो गई, री
मूरख मिर्ची !
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□ भैरव प्रसाद
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