हाइकुकार
राजकिशोर राजपूत
हाइकु
अंबर नीला
बहुत रही सलिला
पृथ्वी हर्षित ।
शब्द सीमित
पीड़ा है असीमित
कैसे व्यक्त हो ?
गोधूलि बेला
सुहानी सांझ ढले
अंचल तले ।
दुखद घड़ी
संकट में इंसान
रहो सचेत ।
स्वस्थ जीवन
प्रकृति से मित्रता
सरल नुस्खा ।
जेठ महीना
आग सी दुपहरी
छाँव प्रहरी ।
मौत खड़ी है
ये आफत बड़ी है
रहो सतर्क ।
आशा की नाव
नाविक का हौसला
लड़े तूफ़ाँ से ।
सत्ता का खेल
खूब रेलमपेल
प्रजा मरी है ।
शीतल हवा
मन हुआ मुदित
धूप है खिन्न ।
चुनावी रार
कुटिल तकरार
जन की रार ।
□ राजकिशोर राजपूत
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