हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 16 मई 2021

~•~ हाइकु कवयित्री शर्मिला चौहान जी के हाइकु ~•~

हाइकु कवयित्री


शर्मिला चौहान 

हाइकु 

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रौद्र हवाएँ

लपेटने निकलीं

जन जीवन ।


सहमा रवि

ओढ़कर बादल

नैन मींचता ।


बरखा बूँदें

थाप पर मेघों की 

नर्तन करें ।


लपक झाँके

चपल दामिनी ज्यों

नवयौवना ।


भाल लकीरें

झट पढ़ लेती माँ

ज्योतिष बड़ी ।


दिन ढ़ला है

किताबें रोशन हैं

माँ के दीप से ।


नई पुस्तक

बचपन में खोली

महकी आज ।


उठता धुआँ

आशाओं की रोटियाँ

नित सेंकती ।


सौत अलसी

चने संग झूमती

जली सरसों ।


गोरैया बुने

नीड़ तिनके जोड़

स्वप्न बेजोड़ ।


शिक्षा किरणें

खपरैलों से झाँकें

बेटियाँ बाँचें ।


धुआं उठता

चूल्हे तो बुझे पड़े

क्या है जलता ?


पंछी सयाने

सूरज घड़ी बाँचें

लौटें नीड़ को ।

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□ शर्मिला चौहान


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