चित्र आधारित चोका सृजन प्रतियोगिता
हाइकु ताँका प्रवाह
(माह - जून, क्र. 14)
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चयनित प्रतिभागी
आधार चित्र
प्रविष्टि के 16 चोका
1.
अरी सुंदरी
हो क्यों विचार मग्न
सैनिक पत्नी
पति सीमा तैनात
उदारमना
प्रतीक्षा दीप जला
विरह व्यथा
झेलती मुस्कुराती
निज धर्म निभाती ।
□ निर्मला पांडेय
2.
सांझ है ढली
दीप जले देहरी
संस्कारी नारी
सँवार के आँचल
ईश का ध्यान
स्नेह उर उजास
आस्था विश्वास
लक्ष्मी का होता वास
दृढ़ है आस
स्वर्ग सा बना घर
श्रद्धा अपार
दीप सम है भाव
फैला रोशनी
किया है समर्पण
नारी उर विशाल ।
□ राजश्री राठी
3.
दीपक जले
जीवन पथ तम
हरता चले
मुख अंचल ओट
नत नयन
निहारे नव कल
ज्योति संबल
कुविचार शलभ
नित्य दहन
मनमंदिर दीप्त
हटे तिमिर
नव आस नवल
आरोग्य धन
आलोकित जीवन
दीप ज्योति नमन
□ शर्मिला चौहान
4.
राह देखती
आयेंगे प्रियतम
स्वप्न हजार
मन में हैं संजोये
पूर्व की बातें
यादों में बसी ऐसी
सोच कर वो
मन मुदित हुई
दीप जलाया
मन देहरी पर
आज बैचेन
काल नहीं गुजरे
जल्दी से आओ
हे मेरे प्रियतम
अब निकले दम ।
□ मधु सिंघी
5.
हे कोमलांगी
मन की मजबूती
देगी सहारा
न हो तुम उदास
उड़ना अभी
हुनर के सुंदर
पंख पहन
लगन की अगन
तपाते जाना
साथ देगा जमाना
मेरी कहानी
जुदा नही इससे
जला खुदको
उजाला फैलाया है
सुखामृत पाया है ।
□ शीला तापड़िया
6.
एक लौ जली
रोशन हुआ घर
अंधेरा छटा
रश्मियों की झालर
झूमती गाती
अंखियों का झरोखा
दिल पूछता
नारी तू क्यों अबला
कदम बढ़ा
खुशियों की बाती ले
उम्मीद जगा
पीड़ा की ये चादर
हटा तन से
आसमां को छूना है
नव कहानी लिख ।
□ पूनम मिश्रा
7.
जलाया दिया
भागे घना अंधेरा
फैले प्रकाश
आलोकित हो गेह
बढ़ाये नेह
दीपक की साधना
अंध काटना
तेल बाती का योग
अग्नि प्रयोग
मद्धिम है रोशनी
पस्त अंधेरा
लड़ा अनवरत
संपूर्ण रात
देता रहा उजास
घर की ज्योति
संस्कारित नारियां
दीप सा जलें
कुलदीपक जनें ।
□ गंगा पांडेय 'भावुक"
8.
जनम लेते
आशाओं की कोख से
दीप उजले
मन की मुंडेर पे
तुम्हारे लिए
जगमगाते दीये
ज्ञान की देवी
तेजोमय मुख पे
आस्थाएं जले
सांस-सांस श्याम की
मालाएं जपे
चाँद , सूरज , तारें
लेकर आये
जुगनूओं का नूर
भरकर थैले में ।
□ अल्पा जीतेश तन्ना
09.
तन माटी का
दीपक और मेरा
मोम हृदय
भीतर का उजाला
जग को देते
पुरज़ोर हवा का
यत्न बुझाना
परमार्थ की अग्नि
सतत जली
लड़ते हम दोनों
तम से सदा
कहाँ टिक पाता वो
बोलो तो भला !
अंतिम श्वास तक
बिखेरेंगे उजास !
□ विद्या चौहान
10.
दीया ये जले
याद करे ललना
कौन हो तुम
मीरा , राधा , उर्मिला
प्राणों से दूर
है तुम्हारा सजना
भक्तन बनी
जामदानी साड़ी में
खोयी सुंदरी
एकांत में सोचती
दीया मैं बाती
प्यार रहेगा वहाँ
रोशन होगा जहाँ ।
□ निर्मला हांडे
11.
सुंदर नारी
आस्था में मूँद आंखें
पहने साड़ी
भक्ति में थामे साँसें
दीपक जला
खुद लबों को थामें
चार दिवारी
घर सच्चा मंदिर
करती जाप
सबका भला चाहे
है मन में ईश्वर ।
□ हरीश रंगवानी
12.
सांझ की बेला
बालती है गृहिणी
दीप की बाती
तिमिर परिहार्य
दीप्ति प्रणम्य
दिव्य प्रभा मंडल
शुभतादायी
दीप स्तुति महात्म्य
कल्याणमयी
करती है प्रार्थना
सांध्य वंदना
हरो सकल त्राण
दो भय मुक्ति
छँट जाए दुर्बुद्धि
मिले स्वास्थ्य समृद्धि ।
□ सुधा राठौर
13.
मन मेरा भी
दीपक सा जला है
पिया ने छला
अंधियारा फैला है
जोत जलाई
दिवस बीत गए
ओ री हवाओं
रुक जाओ बाहर
जोत ना बुझे
वो गए परदेस
आकुल नैना
आशा जोत जलाऊं
वो आते होंगे
महकती रजनी
मिटेंगे अलगाव ।
□ रति चौबे
14.
ये बंग वधु
हरिप्रिया गृह की
बांध शाटिका
धवल सुर्ख वर्ण
द्युति आनन
नयन झुके झुके
शक्ति रूपेण
करुणामयी मातृ
देवी स्वरूपा
आला मे रख दीप
संध्या स्तुति में
एकाग्र मन लिये
अनुरक्त हो
उपासना करती
शान्त सरोवर सी ।
□ रूबी दास
15.
ढली है साॅंझ
मिलन की है आस
दीप जलाए
पिया का इंतजार
लजीले नैन
सादगी की मूरत
श्वेत वसना
पर रंगत लाल
दिल में तूफाॅं
लरज़ते अधर
कहें कहानी
पी करें मनमानी
भटक राह
सौतन घर पाए
क्यों मुझे बिसराए ।
□ सुषमा अग्रवाल
16.
संध्या की बेला
दीवट पे दीपक
जले साथ में
पलकें हैं बिछाये
तेरे दीद..में
आ भी जाओ सजन
तकते नैन
चैन नही मन में
अगन बदन में.....
□ ए.ए.लूका
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