हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 10 जून 2025

~ हाइकु कवयित्री अनिता गोयल जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री अनिता गोयल जी के हाइकु 

अनिता गोयल

हाइकु 


शुभ प्रभात 

भोर लाई सौगात 

बढ़ते रहो ।


भीषण गर्मी

ठंडी हवा का झोंका 

आनंद आया ।


काली बदली

उमड़ के है आई 

नहीं बरसी ।


गुजरी रात

आई शुभ प्रभात 

नमन करो ।


नदिया चली

सागर को मिलने

मंज़िल मिली ।


यह जीवन 

है नदिया की धारा

चलना होगा ।


व्यापार बढ़ा

कछुए की खाल का

कष्ट में जाति ।


छप्प छपाक 

बगुले का झपटा

फिर सन्नाटा ।


नीड़ बनाया

तिनका चुन चुन

बंदर तोड़ा ।


नौतपा मस्त 

मौसम आशिक़ाना

गाए तराना ।


बहुत किया

प्रकृति का शोषण 

लोभी मानव ।


~ अनिता गोयल

पंचकूल, हरियाणा (भारत)

गुरुवार, 5 जून 2025

ग्रीष्म व वर्षा से सम्बन्धित डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी के हाइकु

ग्रीष्म व वर्षा से सम्बन्धित हाइकु

डॉ. मिथिलेश दीक्षित 

 


हाइकु


थम गयी है

हवा की धड़कन 

बहुत गर्मी !


*

नयी पौध की

सूखती पल -पल

यह फसल !


*

छाया देकर 

हमसे ऊंचा हुआ

हमारा पेड़ !


*

उन्हें बचा लें 

जिन पेड़ों की जड़ें 

सूखने ‌वाली !


*

सूखे ‌ हैं ‌वृक्ष

सूख रही‌ चेतना 

जीवन बिना !


*

तीव्र आतप 

फिर भी हरे -भरे 

स्मृति -पादप !


*

गर्मी का दौर 

धूप में सुलगता 

पाखी का‌ ठौर !


*

सांस भी लेना

गर्मी के शासन में 

मुश्किल है ना !


*

तपन में भी

मुस्कराते नीम ये 

कितने ‌हरे !


*

गंगा ‌को दिये 

एक दिन ‌तो दिये 

फिर ‌कचरे !


*

आते‌ विचार 

हरे-भरे वृक्षों ‌की

शोभा ‌निहार‌ !


*

कोशिश होगी

अमर‌ बेल यह

सूख न पाये ! 


***


~ डॉ. मिथिलेश दीक्षित

शनिवार, 17 मई 2025

रूबी दास जी द्वारा "माटी के दीप" चोका कृति की समीक्षा

मान्यवर प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी के अनमोल चोका संग्रह "माटी के दीप" की समीक्षा 


माटी के दीप (चोका संग्रह)
रचनाकार : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
प्रकाशक : अविशा प्रकाशन, नागपुर (महाराष्ट्र)

     मेरे अंचल, मेरी माटी, मेरे घर छत्तीसगढ़ से निकली पुस्तक हाइकु साहित्य के पारंगत  मान्यवर "प्रदीप कुमार दाश "दीपक" जी द्वारा प्रकाशित  चोका संग्रह "माटी के दीप  के लिए मेरे दो शब्द । 

    सर्व  प्रथम  इस पुस्तक में पहले ही देखने को मिलता है कि वे अपनी धर्म  पत्नी को समर्पित यह पुस्तक  नारी के प्रति उनका सम्मान झलकता है । आपकी इस पुस्तक की विशेषता उनके मनोभाव को दर्शाती है । भावों की तरलता से कलमबद्ध  किया है ।चोका हाइकु विधा की छोटी सी काव्य शैली में अपने अनुभव का रस कविता मे पिरोया है । हर काव्य में परिस्थितियों के आंकलन का सशक्त निराकरण किया है ।

       उनकी पहली कविता 'चिड़िया' उषा के उदय होते ही पंछी के कलरव से शुरु होकर नीड़ बनाने की यात्रा तक उसकी जीवन शैली को दर्शाती है । "बेटियाँ" कविता में नारी की वेदना, नारी अपनी मन की इच्छा को कब तक दबा के रखेगी जबकि नारी में जीवन दान देने की शक्ति है। "तुलसी" के पौधे से नारी का तुलनात्मक वर्णन  किया है । तुलसी का पौधा जैसे पवित्र है वैसे दवाई के काम भी आती है । "छोटा सा दीप" यदि अपने किंचित आभा से प्रज्वलित होकर अंधेरे को दूर करती है और हराकर सुबह का इंतजार करती है ।

        "सुप्रभात" कविता में प्रकृति को एक माँ का रूप मानते हुए उगते सूर्य को अबोध बालक मान लिया और प्रकृति का वर्णन करते हुए प्रकृति के गोद में समाहित कर दिया । शाश्वत  प्रीत का बिम्ब कितना सुंदर है, तन बाँसुरी और पूरे जग को एक विशाल कदम के पेड़ के रूप मे दर्शा कर अपने मनोभावना को व्यक्त किया है । "शुभ  चंन्द्रिका" में प्रियतम से मिल कर बात करने की और प्रेम की परिभाषा को इंगित करती है । मिलन कविता मे ओ री जूही में पुष्प के खिलते ही मानो अपनी आहुति श्रृंगार से पूजा स्थल देने आई हो । भौरों का रस चूसना समर्पित भाव को दर्शाता है । अवसाद कविता में सुन्दर बिम्ब उभर कर आया है । उर की खिड़की दर्द की धूप के साथ साथ जीवन के प्रति उदासीनता का वर्णन मन को छू लेती है । भोर स्वागत, मेघों के गाँव, प्रकृति के वर्णन के साथ साथ जीवन  दर्शन  को दर्शाती है । सृजन द्वार में कल्पना की उँचाई को छूते हुए रात के गर्भ में पल रहे सूरज को एक नवजात के रूप में परिलक्षित  करता है । तृण का सूखना भी पंछी के लिए सौगात है क्यों कि उसी तिनके से वह अपना नीड़ बनायेगा । कितना दूर दृष्टिकोण  है कवि के मन में । सुबह के वर्णन के साथ-साथ उन्होने संध्या को भी अपनी पुस्तक  में स्थान दिया है ।आपने संध्या को एक प्रेयसी के रूप में वर्णन कर नव वधू मान शाम के क्रियाकलाप को बुना है । लोगों की परवाह न करते हुए जीवन  के गति को चलने देना चाहिए । कौन कविता में दृष्टिगोचर होता है । जिन्दगानी में बदलते परिवेश  को दर्शाते हुए उसी के समकक्ष सूरज की तलाश को दर्शाया है । मिट्टी का बेटा एक अहम रचना है जिसमें हमारे जीवन  में  किसान की कितनी आवश्कता है ।कवि का कहना है किसान देश की रीढ़ की हड्डी है । धन्य है आज देश की आजादी का वर्णन, देश प्रेम से ओत-प्रोत, शहीदों को वंदन करते हुए आजादी को न भूलने की हिदायत दी है । यादो के रील बार बार संस्मरण का आना जाना  चलता रहता है । मेरा भारत देशभक्ति को चिन्हित करती है । निशा का जाल एक कुम्हार  की जीवन को दर्शाता है, जो कि भूखा रहकर अपने बच्चों को पालना चाहता है और अंधेरे से उजाले की ओर ले जाना चाहता है ।कवि के मन मे वर्षा के आते ही जो खुशी प्रकृति के अंदर दिखाई देती है उसका भी वर्णन बखूबी की है ।

         मुखपृष्ठ  "माटी के दीप" शीर्षक को सार्थक करती है । अविशा प्रकाशन नागपुर  से प्रकाशित यह पुस्तक  पूर्ण रूप से अपना कर्तव्य  निभाने  में सफल हुआ है । मेरा पाठक गणों से आग्रह  है कि इस किताब को पढ़ें और चोका काव्य का आनंद लें ।

      मैं पुस्तक के लेखक मान्यवर प्रदीप  कुमार  दाश  "दीपक"  जी एवं अविशा प्रकाशन  को मेरी शुभकामनाओं सहित बधाई  देती हूँ ।


~ रूबी दास "अरु"

नागपुर  महाराष्ट्र 

9145252882

बुधवार, 19 मार्च 2025

आरती परीख जी के गुजराती हाइकु एवं हिंदी अनुवाद

आरती परीख जी के गुजराती हाइकु एवं हिंदी अनुवाद

આરતી પરીખ


આંગણું


વંડી ઠેકીને

આવે સૂર્ય કિરણો

નાચે આંગણું ।

*****

અંતરે પિયુ

ઠાલા બારણાં વાસી

તપે આંગણું ।

*****

ભરબપોર

બંધ બારી બારણાં

તપે આંગણું ।

*****

શરદ રાત

તાપણે વાર્તાલાપ

જાગે આંગણું ।

*****

ઢોલિયો ઢાળી

વૈશાખી વાયરાઓ

માણે આંગણું ।

*****

પૂનમ રાત

ચાંદનીમાં ન્હાઈને

શ્વેત આંગણું ।

*****

અમાસી રાત

કાળી કાંબળી ઓઢી

પોઢે આંગણું ।

*****

ઢોલ ઢબૂકે

કન્યા વિદાય વેળા

સૂનું આંગણું ।


~ આરતી પરીખ


आंगन


दीवार लांघ

आती सूर्य किरणें

नाचे आंगन ।

**

पियु विरह 

सूनी सी दहलीज 

तप्त आंगन ।

**

दुपहरी में

बंद द्वार-खिड़कीं

दग्ध आंगन ।

**

शरद रात

अलाव संग बातें

जगे आंगन ।

**

खटियाँ ताने 

बैसाखी बयार में

सोया आंगन ।

**

पूर्णिमा रात

चंद्रिका आग़ोश में 

श्वेत आंगन ।

**

कृष्ण पक्षांत

काली चादर तले

लैटा आंगन ।

**

ढोल की गूंज 

कन्या विदाई बेला

सूना आंगन ।


~ आरती परीख

सोमवार, 10 मार्च 2025

हाइकुकार अंजनी कुमार शर्मा जी के अंगिका हाइकु

अंजनी कुमार शर्मा

अंगिका हाइकु


1.

बोली नै भाषा

छै हमरो अंगिका

अंगो के टीका ।


2.

विक्रमशिला

अजगैबी, मंदार

अंगो के द्वार ।


3.

जेंठा छै केला

लीची अफराद

बदलै स्वाद ।


4.

लहरावै छै

आमो केरो बगीचा

अंग-अंग में ।


5.

शरतचंद्र

के जेंठा ननिहाल

आदमपुर ।


6.

दानी कर्ण भी

रहै यहीं के राजा

मुस्कावै प्रजा ।


7.

सती प्रथा के

नींव पड़लै यहीं

जनपद में ।


8.

दस ठो बच्चा

जन्मवावै छै लुच्चा

ठग समुच्चा ।


9.

अंग धरा के

पांव पखारै गंगा

आरो कोशी भी ।


10.

शिक्षा के केंद्र

छिकै भागलपुर

दूर-दूर सें । 


11. नै अपमान

करो नारी सम्मान

माय समान ।


12 

नै छै अबला

नारियो छै सबला

पूजनीय छै ।


13.

माय के पूजो

होथोंन बरक्कत

बनो सशक्त ।


14.

जत्ते कूदतै 

बंदरवा गाछी पे

दर्द भागतै ।


15.

धुडखेल भी

छिकै होली के रूप

चेहरा भूप ।


16.

गंजेरी पीथें

बनै बकबकिया

खोजथों श्रोता ।


17.

जर-जनानी

कानों काटे मर्दो के

आगू वर्दो के 


18.

 हाइकु छिकै

साहित्य के ही विधा

खुब्भे सुविधा ।


19.

सरंगो भेलै

युगो में घर द्वार

जैवो आसान ।


20.

लिखै के आवै

अंजनी के भेले बूध

लिखे छै खूब ।

~~~*~~~


~ अंजनी कुमार शर्मा

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

~ हाइकु कवयित्री ऋता शेखर 'मधु' जी के मगही हाइकु ~

ऋता शेखर 'मधु'


मगही हाइकु

𑂧𑂏𑂯𑂲 𑂯𑂰𑂅𑂍𑂳


1.

बड़ जिगरा

देसवा के सैनिक

बने बेटवाऽ ।


2.

कहलै किस्सा

गुलाब के फुलवा

संगे कंटवा ।


3.

अमलतास

पीयर सड़िया में

खड़ा दुल्हिन ।


4.

चार बेटवा

होलै जे बंटवारा

घटलै खेत ।


5.

जोगी सुरुज

टहले एन्ने ओन्ने 

दिन से रात ।


6.

नदी के धार

बित्तल समइया

कब्बो न लौटे ।


7.

बरा अजूबा

धरती पर आके

टूटलै तारा ।


8.

ठहर गेलैऽ 

दुरबा पर ओस

मोती झुललै ।


9.

बेटी-बिदाई

टेंट के सनाटा में

गूँजे रोलाई ।


10.

मट्टी के चुल्हा

जलाबन लकरी

धुइयाँ आँख ।


11.

होलै बिआह

मेहमान निअर

अइलै धिया ।


12.

बोललै काग

अइतो रे पहुना

जल्दी से जाग ।


13.

जे न कमैले

खाके ताना के रोटी 

भूख मिटैले ।


14.

उड़लै गुड्डी

पीयर सरसो से

सजलै खेत ।


15.

घर के बेटी

सौंसे गाँव के बेटी

सबके दुलरी ।

~ ० ~


~ ऋता शेखर 'मधु'

~ 𑂩𑂱𑂞𑂰 𑂬𑂵𑂎𑂩 '𑂧𑂡𑂳'

सोमवार, 19 अगस्त 2024

रक्षाबंधन के पावन अवसर पर वरिष्ठ हाइकु कवयित्री आ. दीदी डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी के हाइकु

रक्षाबंधन के पावन अवसर पर वरिष्ठ हाइकु कवयित्री आ. दीदी डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी के हाइकु 

डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी


हाइकु 


छूट के भागा

निर्धन ‌बहन का‌

रेशमी धागा !

***

रक्षा बन्धन 

प्रेम की अटैची ‌में

धन ही धन !

***

उत्सव ‌मौन 

रिश्तों में‌ गांठ ‌लगी

खोलेगा ‌कौन ! 

***

बहना ‌भार

बांध ‌नहीं पायी‌‌ जो

सोने का‌ तार !

 ***

उत्सव ‌रीते‌

गांव- नगर छूटे 

रिश्ते भी टूटे ‌!

***

सूनी ‌कलाई

दौलत की शान में 

याद न आयी‌ ! 

*****

~ डॉ. मिथिलेश दीक्षित


रविवार, 18 अगस्त 2024

~ हाइकुकार डॉ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा जी के हाइकु ~

हाइकुकार डॉ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा जी के हाइकु 

डॉ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा


हाइकु 


हम मानव

दानव बन चुके

रोती प्रकृति ।

***

गुंडा बनूंगा 

यही दुनिया है जी

संस्कृति शून्य ।

***

रोती प्रकृति 

कराहता संसार 

कहां हो लल्ला ?

***

भारत माता

अंतर्ध्यान हो चुकी 

बिखरा देश ।

***

नंगा है कौन 

फैशनेबल लोग !

फटी ग़रीबी ?

***

आधुनिकता!

भौतिकता, फ़ैशन!

नई संस्कृति ?

***

पापी बनूं या 

बनूं आदर्शवादी 

असमंजस ।

***

विडम्बना है

राष्ट्रपिता भी बापू 

कैदी भी बापू ।

***

भागते लोग 

दिशाहीन लक्ष्य को

भटके लोग ।

***

नारी पुरुष 

एक दूजे के लिए

दूर हो गये ?

*****

~ डाॅ. राधाकृष्ण विश्वकर्मा 

बरगढ़ (ओड़िशा)

चलभाष - 9337311721

रविवार, 18 फ़रवरी 2024

~ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी को श्रद्धांजलि के हाइकु ~

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ (chandragiri dongargarh jain temple) में शनिवार देर रात 2:35 बजे आध्यात्मिक चेतना के पुंज,  प्रातः वंदनीय, मूकमाटी के रचयिता, महान तपस्वी, ज्ञानी हाइकुकार परम पूज्य 108 आचार्य भगवन जैन महामुनिराज विद्यासागर जी की संलेखनापूर्वक समाधि ।

संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी

18/02/2024

श्रद्धांजलि के हाइकु 


शोक लहर 

विलीन हुई देह

विद्या सागर ।


🌻🙏🌻


मौन हो प्राण 

निकल पड़ी यात्रा 

महा प्रयाण ।


🌻🙏🌻


रुठी बाँसुरी 

अपूरणीय क्षति 

मौन तपस्वी ।


🌻🙏🌻


~ प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'


बुझी न शमा

संयम मार्ग पर 

मिली ज्योत से ।


🌻🙏🌻


परमहंस 

समाए अरिहंत 

आत्मा अनन्त ।


🌻🙏🌻


संत जीवन

संसार से विमुख 

निर्मोही पथ ।


🌻🙏🌻


~ राजेन्द्र सिंह राठौड


तन माटी का

फिर कैसा गुमान

कद काठी का ।


🌻🙏🌻


जीवन तुला

सुख दुख पलड़े

कर्म वजन ।


🌻🙏🌻


~ अभिषेक जैन


धर्म आध्यात्म

संवाहित सरल

नित कर्मठ ।


🌻🙏🌻


योग निष्ठित

संलेखना में स्थित

अश्रुपूरित ।


🌻🙏🌻


वाणी वाग्दत्ता

विद्या सागर पथ

ब्रह्म में स्थित ।


🌻🙏🌻


~ सुशील शर्मा


विघासागर

ज्ञान भक्ति से भरी

भक्ति गागर ।


🌻🙏🌻


सबके मन

जलाई ज्ञान ज्योति

मिटा अज्ञान ।


🌻🙏🌻


गुरु के वचन

हर लेते हैं तम

भींगे अंतस ।


🌻🙏🌻


~ सुनीता दीक्षित 'श्यामा'


संत तपस्वी 

चिर निद्रा में लीन

महाप्रयाण ।


🌻🙏🌻


असीम श्रद्धा

हम नतमस्तक

वैराग्यमूर्ति ।


🌻🙏🌻


~ चंद्र प्रभा


पूज्य  सन्त  को

कोटि - कोटि नमन

पुण्य  स्मरण  !


🌻🙏🌻


~ डॉ. मिथिलेश दीक्षित


नश्वर देह

परमात्मा मिलन

देह त्यागते ।


🌻🙏🌻


आत्मा अमर

दिल में विराजते

संत महान ।


🌻🙏🌻


~ गीता पुरोहित


संदली राहें 

दिव्यात्मा अंतर्लीन

दुःखित मन । 


🌻🙏🌻


महाप्रस्थान

पवित्र आत्मीयता 

अपूर्ण क्षति । 


🌻🙏🌻


~ भुपिन्दर कौर


कोटि नमन

परमात्मा मिलन

ज्ञान भवन ।


🌻🙏🌻


आत्मा अमर

तजा देह नश्वर

जग समर ।


🌻🙏🌻


श्रृद्धा सुमन

विनम्र श्रद्धांजलि

गुरु नमन ।


🌻🙏🌻


~ कमलेश कुमार वर्मा


समाधि लीन

मुनी विद्यासागर

ज्योति स्वरूप ।


🌻🙏🌻


ज्ञान दर्पण

समाधि से दर्शन

आशीष आस ।


🌻🙏🌻


वात्सल्य भाव

मनुष्य कल्याणार्थ

मार्ग प्रशस्त ।


🌻🙏🌻


गुरु वचन

धरोहर संसार

मुक्ति का मार्ग ।


🌻🙏🌻


~ कुन्दन पाटिल


गुरु की वाणी

अहिंसा के रक्षार्थ

शस्त्र का साथ ।


🌻🙏🌻


पग जो रखो

प्राणियों को बचाओ

बचो काँटों से ।


🌻🙏🌻


~ ऋता शेखर 'मधु'


विद्या सागर

पथिक प्रेम पथ

ज्ञान गागर ।


🌻🙏🌻


ऋतु पावस

श्रद्धावनत सब

जन मानस ।


🙏💐🙏


~ मुरारी स्वामी


चेतना पुंज

श्री विद्यासागर जी

समाधि लीन ।


🌻🙏🌻


आत्ममंथन

सरल आचरण

संत जीवन ।


🌻🙏🌻


ज्ञान दीपक

चेतन में जगाते

संत महान ।


🌻🙏🌻


~ विद्या चौहान


तपस्वी कवि

जपे हाइकु माला 

समाधि तक ।


🌻🙏🌻


साधक कर

हाइकु से श्रृंगार

साहित्य सार ।


🌻🙏🌻


~ निर्मला सुरेंद्रन


मौत बेदर्द

रुक न सका पल

ले गया छिन ।


🌻🙏🌻


काल का क्षण

दुख दे जाता सदा

मृत्यु सत्य है ।


🌻🙏🌻


अमृत वाक

गुरुदेव से मिला

शाश्वत सत्य ।


🌻🙏🌻


नतमस्तक 

रहूँ तेरे शरण

हे गुरुदेव । 


🌻🙏🌻


~ रूबी दास "अरु"


चन्द्रगिरि पे

चेतना पुंज लिया

समाधि आज ।


🌻🙏🌻


विद्यासागर

हाइकु में देखे थे

अहोभाव को ।


🌻🙏🌻


~ अजय चरणम्  


एक ही लक्ष्य

उत्कर्ष राह पर

ब्रह्म विलीन ।


🌻🙏🌻


योग जन्मा थे

क्षणिक जीवन में

सिद्धि साधन ।


🌻🙏🌻


माटी का तन

एक दिन जाना था

आत्मा की राह ।


🌻🙏🌻


~ विद्युत प्रभा


निर्मोही संत 

मूकमाटी सा जग 

जग प्रणेता ।


🌻🙏🌻


अमृत वाणी 

अंग प्रत्यंग झरे 

अतुल्य तेज ।


🌻🙏🌻


कभी न हारे 

विषमता के आगे 

अडिग शैल ।


🌻🙏🌻


~ मनोरमा जैन 'पाखी'


कर्म रहेंगे

गर चल भी दिये

संत नमन ।


🌻🙏🌻


~ श्रद्धा वाशिमकर


महान संत

पंचतत्त्व - विलीन

यात्रा अनंत ।


🌻🙏🌻


~ डॉ. विष्णु शास्त्री 'सरल'


सबके प्रिय

पंचतत्व विलीन

महान संत ।


🌻🙏🌻


ज्ञान संदेश

देकर चले गए

प्रभु के देश ।


🌻🙏🌻


~ प्रमोदिनी शर्मा 


विद्या सागर  

चेतना रूप ब्रह्म

तुम्हें नमन ।


🌻🙏🌻


हुई  अमर 

संयम ग्यान जोत

दिखाती दिशा ।


🌻🙏🌻


रचे हाइकु  

त्याग तप संयम   

थाती अमर ।


🌻🙏🌻


~ पुष्पा मेहरा


निर्मानमोही

श्रेष्ठपदाधिकारी

सिद्ध जीवन ।


🌻🙏🌻


~ संतोष कुमार प्रधान


भक्ति सागर

संतो में शिरोमणि

विद्यासागर ।


🌻🙏🌻


~ सुनीता दीक्षित 'श्यामा'


नभ में सूर्य

सद्गुरु धरा पर

आलोक प्रसू ।


🌻🙏🌻


मुमुक्षु जन

अर्जित ब्रह्मज्ञान

पा जाते त्राण ।


🌻🙏🌻


~ इन्दिरा किसलय


साध संयम

चल पड़ा तपस्वी

अनंत पथ ।


🌻🙏🌻


पूर्ण साधक

बांटता रहा योगी

जीव भावना ।


🌻🙏🌻


~ शर्मिला चौहान


प्रातः नमन 

हे जैन महामुनि

श्रद्धा सुमन ।


🌻🙏🌻


तप तल्लीन 

थे विद्या के सागर

ब्रह्म में लीन ।


🌻🙏🌻


जर्जर काया

तपस्या प्रतिमूर्ति

ब्रह्म समाया ।


🌻🙏🌻


~ गंगा पांडेय "भावुक"

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