हाइकु मञ्जूषा
दिसम्बर - 2017 के चयनित हाइकु
{श्रेष्ठ हिन्दी हाइकु संचयन}
संपादक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
( "हाइकु मञ्जूषा", "हाइकु - ताँका प्रवाह", "हाइकु मंच छत्तीसगढ़" एवं "हाइकु की सुगंध" समूह से साभार । )
01.
नदी का कर्ज
सागर भेजे मेघ
निभाये फर्ज ।
✍ऋतुराज दवे
02.
सर्दी की धूप
वनवासी कन्या का
उजला रूप ।
✍अयाज़ ख़ान
03.
चाँद उलझा
बादलों की राह में
रात का साया ।
✍अविनाश बागड़े
04.
खेत में आग
पुवाल का टुकड़ा
चिड़ि ले फ़ुर्र ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
05.
तितली-पंख
पीने लगे चोरी से
फूलों के रंग ।
✍सुधा राठौर
06.
तुम्हारे लिए
रेत पर उकेरे
मन के भाव ।
✍सुशील शर्मा
07.
नहाती रोज
उल्फत की फसलें
बहता लहू ।
✍रामेश्वर बंग
08.
निशा अतिथि
कलानिधि चंचल
सखी कौमुदी ।
✍अंकिता कुलश्रेष्ठ
09.
पाषाण खण्ड
किनारे से निकला
सफेद दूब ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
10.
बाँस की पोरी
छिन्न-भिन्न हृदय
गाती है लोरी ।
✍सुधा राठौर
11.
कर्म कल्मष
गुलाब कण्टक सा
दिल को छेदे ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
12.
गुलाब कली
शूलों संग पलती
सुगंध भली ।
✍स्नेहलता "स्नेह"
13.
विमल रूप
कुहासे से निकली
स्वर्णाभ धूप ।
✍पुष्पा सिंघी
14.
पीपल पर्ण
रेखाएं कर्म ऋण
चुका उऋण ।
✍हेमलता मिश्र
15.
कोहरा कहाँ
मन में या बाहर
ढूँढ़ो तो सही ।
✍सतीश राठी
16.
द्वारे पे आई
बेटी को दी बिदाई
फूटी रुलाई ।
✍डाॅ. वीणा मित्तल
17.
बेटी का बाप
झेलता अभिशाप
दहेज़ सांप ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
18.
सुबह-शाम
हो गया आसमान
लहु-लूहान ।
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य'
19.
छुई मुई सी
सिकुड़ती जा रही
पूस की धूप ।
✍किरण मिश्रा
20.
यामिनी लाई
सितारों की चुनरी
सजी धरित्री ।
✍सविता बरई
21.
ढलती साँझ
पुराने कागज पे
नये तराने ।
✍पुष्पा सिंघी
22.
मन का द्वार
तू प्रेम की झाड़ू से
सदा बुहार ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
23.
सर्दी की रात
खरोंच रहा बूढ़ा
ठंडा अलाव ।
✍दिनेश चंद्र पांडेय
24.
बनी कहानी
महकी रात भर
रात की रानी ।
✍आर. के. निगम "राज़"
25.
सर्द हालात
कंपकंपाती रात
ठिठुरे गात ।
✍दाता राम पूनिया
26.
ये खलिहान
किसानों की मुस्कान
सोने की खान ।
✍सुमिधा "हेम" सिदार
27.
प्रभु मिलन
ये आत्मा बंजारन
छोड़ती तन ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
28.
सरिता थी वो
कल कल करती
गुम हो गई
✍जाविद अली
29.
लाख टका है
तेरी वाणी का मोल
तोल के बोल ।
✍डाॅ. संतोष चौधरी
30.
सत्संग हॉल
लाउडस्पीकर में
शांति का पाठ ।
✍अभिषेक जैन
31.
टूटते रिश्ते
अस्तित्व को ढूँढता
बुजुर्ग पेड़ ।
✍रामेश्वर बंग
32.
एक किरण
नाप गई क्षितिज
कांपे नयन ।
✍पूनम मिश्रा
33.
जीव है रथी
हाँकता देह रथ
काल सारथी ।
✍देवेन्द्रनारायण दास
34.
सूरज उगा
काली घनी रात को
देकर दगा ।
✍अमन चाँदपुरी
35.
चलती रात
सुबह की मंज़िल
तिमिर साथ ।
✍अविनाश बागड़े
36.
ख्याली पुलाव
बना रहा मानव
चाँद पे घर ।
✍किरण मिश्रा
37.
छोड़ो तनाव
मैत्री मानव भाव
मिटते घाव ।
✍एन. एस. गोहिल
38.
धूप नहाई
प्रातः अंगड़ाई ले
धरा मुस्काई ।
✍ऋतुराज दवे
39.
तुम्हारी याद
सूखे फूल का स्पर्श
कोयल कूक ।
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव
40.
भोर की लाली
सुनहरे सपने
ले कर आई ।
✍मधु गुप्ता
41.
प्रण है प्राण
जीवन अभियान
करो प्रयाण ।
✍संजीव कुमार पाणिग्राही
42.
मन सागर
सीप सी थाह सोच
देती है मोती ।
✍रामेश्वर बंग
43.
पूस की ठंड
रात खोजती रही
सूर्य दुशाला ।
✍नरेन्द्र श्रीवास्तव
44.
ख़्याली पुलाव
वायदों की रेवड़ी
आया चुनाव ।
✍डॉ. राजीव पाण्डेय
45.
मनभावन
ऊगता हुआ रवि
रश्मि के संग ।
✍शुचिता राठी
46.
दुंदुभि बजी
नव ऊर्जा संचार
लो भोर आयी ।
✍मधु सिंघी
47.
सूक्ष्म शरीर
मन की चंचलता
चांद के पार ।
✍मनीलाल पटेल "नवरत्न"
48.
बाँटें खुशियाँ
बन के तितलियाँ
भोली बेटियाँ ।
✍अनिल शुक्ला
49.
बेटी चिरैया
कर्तव्य तिनके से
बुने घरौंदा ।
✍ऋतुराज दवे
50.
सोन चिरैया
अंगना में बिटिया
धन पराया ।
✍हेमलता मिश्र
51.
यत्न प्रबल
प्रारब्ध को बदल
नर सबल ।
✍दाता राम पुनिया
52.
भाव विभोर
हँसती हरियाली
रक्तिम भोर ।
✍अविनाश बागड़े
53.
वह सरिता
वजुद समर्पित
सिन्धु को सदा ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
54.
ज्ञान के स्रोत
गोता लगाते ज्ञानी
भाव विभोर ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
55.
स्वर्ण बिखरा
झील की देह पर
कमल हँसा ।
✍सुशीला जोशी
56.
नवल पत्ते
प्रकृति के श्रृंगार
पुष्प हँसते ।
✍जगत नरेश
57.
मन सरिता
बहे निर्मल धार
शुद्ध विचार ।
✍रामेश्वर बंग
58.
चूजे प्रसन्न
ममता का आगोश
नेह का घोष ।
✍मधु सिंघी
59.
धरा स्तन से
फूटती जल धार
जीवनाधार ।
✍सुशीला जोशी
60 .
उलझीं तो क्या
खोल के सुलझा लो
जिन्दगानियाँ ।
✍राकेश गुप्ता
61.
नदिया प्यासी
सिमटी सी बगिया
फैली उदासी ।
✍राधा 'सवि'
62.
जीवित आस
रिश्ते होते हैं ख़ास
प्राप्ति आभास ।
✍विनय कुमार अवस्थी
63.
जिंदगी आब
कलकल बहती
झरते ख्वाब ।
✍किरण मिश्रा
64.
श्वेत पर्वत
ध्यानरत सन्यासी
मौन का व्रत ।
✍मनीष त्यागी
65.
धूप कनक
बिखर गई अब
धरा मोहक ।
✍पूनम मिश्रा
66.
बाबा का श्राद्ध
कबाड़ी खरीदता
पुरानी खाट ।
✍पुष्पा सिंघी
67.
शुक्ल का चाँद
दिनोदिन बढ़ता
घटे कृष्ण में ।
✍स्नेहलता "स्नेह"
68.
विस्तृत नभ
मौन और निस्तब्ध
है हतप्रभ ।
✍सुधा राठौर
69.
अति है बुरी
नीयत क्या समझी
छवि गँवाई ।
✍विनय कुमार अवस्थी
70.
मन गगन
सपनों में खो गये
बंद नयन ।
✍सविता बरई
71.
श्वेत कफ़न
वो भी बन न सका
अंतिम धन ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
72.
चाँद निखरा
बादलो का लिबास
धुंध श्रृंगार ।
✍शुचिता राठी
73.
वक्त के साथ
मिट जाते अक्सर
घाव गहरे ।
✍डॉ. मीता अग्रवाल
74.
रवि सदन
करती है किरण
अभिवादन ।
✍अविनाश बागड़े
75.
झुर्रियाँ कहे
दुनिया बदली है
वृद्घाश्रम में ।
✍रति चौबे
76.
प्रदोष चाँद
उग आया गगन,
शुभ्र है साज ।
✍पूनम मिश्रा
77.
पूस की रात
कंपित दीप की लौ
दादी के हाथ ।
✍विष्णु प्रिय पाठक
78.
बही बयार
मुस्काई है प्रकृति
गाए मल्हार ।
✍नीरु मोहन
79.
माटी मितान
अन्धाधुंध कटाई
रोए किसान ।
✍स्नेहलता 'स्नेह'
80.
झाँकता रवि
धुन्ध की चादर से
रक्तिम भोर ।
✍डॉ. रंजना वर्मा
81.
सिंदूरी शाम
चाँद के आगोश में
शीतल छाँव ।
✍अल्पा जीतेश तन्ना
82.
कटी पतंगें
सजा बूढ़ा पीपल
आयी खिचड़ी ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
83.
बर्फीली शिखा
हवा छूकर चली
सूरज दिखा ।
✍शैलमित्र अश्विनीकुमार
84.
मन की पाँखें
अनुपम उड़ान
अम्बर नापें ।
✍डॉ. राजीव पाण्डेय
85.
बागी दरिया
हतबल नौकाएँ
टेर लगाएँ ।
✍इंदिरा अग्रवाल
86.
बर्फीली हवा,
सुई सी चुभोती है
पूस की रात।
✍देवेन्द्र नारायण दास
87.
मन तरंग
लेती जब हिलोरें
बढ़े उमंग ।
✍डाॅ. आनन्द शाक्य
88.
स्निग्ध पूरब
स्तब्ध प्रकृति यहाँ
शीत लहर ।
✍राजेश पाण्डेय
89.
दुबका रवि
ओढ़ कर फिर से
निशा रजाई ।
✍डाॅ. संजीव नाईक
90.
सजग रहो
सुख दुख सबमें
प्रणत रहो ।
✍डाॅ.मीना कौशल
91.
बीता समय
झरने लगे फूल
ठूँठ जीवन ।
✍ऋतम्भरा
92.
भोर के संग
दिवाकर ले आये
आस उमंग ।
✍चंचला इंचुलकर सोनी
93.
श्रेष्ठ विधान
सूरज से मिलता
दिशा का ज्ञान ।
✍बलजीत सिंह
94.
सुबह हुई
रवि धुनिया धुने
रश्मि की रुई ।
✍डॉ. रंजना वर्मा
95.
मैके की याद
छोंक रही है बहु
दाल के साथ ।
✍अभिषेक जैन
96.
मित्रों के संग
बदल जाते सदा
जीवन रंग ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
97.
चंद्र किरण
धरती पे उतरी
जग मगन ।
✍रेनू सिंघल
98.
बेटी बिदाई
कलेजे का टूकड़ा
होती पराई ।
✍मधु गुप्ता
99.
भागी सहम
माँ के काले टीके से
बुरी नज़र ।
✍ऋतुराज दवे
100.
खिलती धूप
हँसते है सुमन
सजती धरा ।
✍पूनम मिश्रा
101.
कोमल स्पर्श
मखमल सी धूप
निराला रूप ।
✍शुचिता राठी
102.
श्वेत बादल
नभ में भरे रंग
हवा के संग ।
✍रामेश्वर बंग
103.
ईश का पता
रिश्तों के शिखर पे
माता व पिता ।
✍ऋतुराज दवे
104.
बच्चे हैं न्यारे
ममता के मूरत
जमी के तारे ।
✍डॉ. संतोष चौधरी
105.
नदी पठार
प्रकृति के आकार
धरा आधार ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
106.
ऊषा जो आई
रजनी ने समेटी
काली रजाई ।
✍ऋतुराज दवे
107.
बच्चे हमारे
नभ के जैसे तारे
ईश के प्यारे ।
✍नीरू मोहन
108.
हमसफ़र
जीवन के डगर
सुन्दर पल ।
✍नीलम शुक्ला
109.
पीला है पर्ण
रंगहीन जीवन
ढूँढता ठौर ।
✍रामेश्वर बंग
110.
ठंडी ही होती
रजनी की थाली में
पूनो की रोटी ।
✍ऋतुराज दवे
111.
सूरमेदानी
साँझ की अँखिया है
बड़ी सुहानी ।
✍शुचिता राठी
112.
कुर्सी के ठाठ
चुनावी ठेले पर
बंदर बाँट ।
✍इंदिरा किसलय
113.
निशा के खेत
जुगनू बने तारे
दौड़ते सारे ।
✍ऋतुराज दवे
114.
मन का मौन
बदलता जीवन
देता है पथ ।
✍रामेश्वर बंग
115.
आँसू न बहा
हिम्मत से काम ले
साहस दिखा ।
✍परमेश्वर अंचल
116.
रिश्तों की कली
स्नेह प्यार से खिले
फूल महके ।
✍रामेश्वर बंग
117.
ओस नहाई
दूब ने बटोर ली
शीत-कमाई ।
✍सुधा राठौर
118.
प्यासे पत्थर
बहते निर्झर से
पी रहे जल ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
119.
भानु लाड़ली
ओढ़े चुनरी लाली
भोर नवेली ।
✍पूर्णिमा सरोज
120.
छटा पहरा
हट गया कोहरा
सूरज दिखा ।
✍कपिल जैन
121.
किस दौड़ में
घिसते कलपुर्जे
मानव यंत्र ।
✍मनीभाई "नवरत्न"
122.
सूर्य किरण
पृथ्वी पे यूँ दौड़ी ज्यों
स्वर्ण हिरण ।
✍सूर्यनारायण गुप्त "सूर्य"
123.
चाँदनी भोली
तारों संग खेलती
आँख मिचौली ।
✍बलजीत सिंह
124.
चाँद चूमता
धरती की चौखट
चाँदनी फैली ।
✍डाॅ. संजीव नाईक
125.
जीवन रंग
सजीव हो चले हैं
प्रकृति संग ।
✍प्रकाश कांबले
126.
चहके खग
भोर हुई साथियों
चेतन जग ।
✍एन एस गोहिल
127.
गाती थी धुन
बाग से निकल के
चिड़िया गुम ।
128.
पत्तों की बातें
पंछियों के तराने
बाग में जाने ।
✍ऋतुराज दवे
129.
हिन्दू न मुल्ला
मानव बुलबुला
केवल हवा ।
✍गंगा पाण्डेय "भावुक"
130.
रश्मि गगरी
लुढ़की धरा पर
ज्योति बिखरी ।
✍कृष्णा श्रीवास्तव
131.
शीत लहर
ढा रही है कहर
बनी जहर ।
✍प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
132.
है सतरंगी
कहे दिल की बात
मन गुलाब ।
✍रामेश्वर बंग
133.
शीत के शूल
निशा की गलियों में
उगा बबूल ।
✍सुधा राठौर
134.
साफ हृदय
तरू बरगद का
भगाये भय ।
✍एन एस गोहिल
135.
धरा है दंग
मौसम गिरगिट
बदले रंग ।
✍ऋतुराज दवे
136.
ठिठक गई
देहरी पे आकर
साँवली साँझ ।
✍सुधा राठौर
137.
चाँद ने खींचा
सर्दी से डर कर
ओस का पर्दा।
✍मनीष त्यागी
138.
श्रापित हुई
बनी शिला अहिल्या
जोहती स्पर्श ।
✍गंगा पांडेय "भावुक"
139.
गाँव की गोरी
अर्घ्य सुर्य तुलसी
ममता लोरी ।
✍एन एस गोहिल
140.
आत्मा अटकी
अधर में लटकी
मुक्ति जरूरी ।
✍विनय कुमार अवस्थी
141.
घना कोहरा
ठिठुरता बदन
माघी पहरा ।
✍भीष्मदेव होता
142 .
नूतन वर्ष
जीवन में उत्कर्ष
कर संघर्ष ।
✍किरण मिश्रा
143.
कल्पित मन!
ठिठुरता बसेरा
कलपे जन ।
✍एन एस गोहिल
144.
नूतन वर्ष
खुशियाँ हों या हर्ष
जीव उत्कर्ष ।
✍कुमार आदेश चौधरी 'मौन'
145.
भोर का प्यार
किरण की थपकी
कली मुस्काई ।
✍ऋतुराज दवे
146.
दौड़ाते साथ
उम्र के पड़ाव पे
नूतन ख्वाब ।
✍ऋतुराज दवे
147.
कसमसाई
धूप है अलसाई
गुनगुनाई ।
✍शगुफ्ता यास्मीन काज़ी
148.
बिछड़ा वर्ष
यादों की झरोखा दे
शुभ विदाई ।
✍मनीभाई "नवरत्न"
149.
भेद अंधेरा
निकला है सूरज
नए वर्ष का ।
✍राजीव गोयल
150.
वर्ष नूतन
सूर्य रश्मियों संग
भर दे रंग ।
✍रामेश्वर बंग
151.
वर्ष नवल
पूरण हों सभी के
शुभ संकल्प ।
✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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बहुत उम्दा प्रयास
जवाब देंहटाएंनमन सभी साधुजन की लेखनी को
नव वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो!
आदरणीय प्रदीप कुमार दाश जी के अथक परिश्रम को नमन एवं सभी हाइकुकारों को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंनया वर्ष आप सभी के लिए मंगलमय हो।
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