हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

देहरी पे सूरज (हाइकु मुक्तक संग्रह की समीक्षा)

  मन को सहज उद्वेलित करता हाइकु मुक्तक संग्रह "देहरी पे सूरज"

                                    कृतिकार : - देवेन्द्र नारायण दास   

प्रकाशक : पूजा ग्राफिक्स बसना       प्रकाशन वर्ष - नवम्बर 2017

पुस्तक मूल्य 100/------                                           68 पृष्ठ

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समीक्षक : - प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


     हाइकु मूलतः जापानी काव्य विधा है, जिसका शिल्प विधान भारतीय काव्य साहित्य में 05,07,05 वर्णक्रम के क्रम की त्रिपदी लघु काव्य के रुप में स्वीकार किया गया है । भारत में जापान की प्रसिद्ध साहित्यिक विधा हाइकु, ताँका, सेदोका, चोका, हाइबन व रेंगा में लेखन चलता आ रहा है । यह निरा सत्य है कि भारत में "हाइकु" 17 वर्ण की मुकम्मल एक संपूर्ण कविता का रूप है । जापान में इस पर किसी भी प्रकार का प्रयोग अब तक स्वीकार्य नहीं है, परंतु भारत में इस विधा का भारतीयकरण के प्रयास में इसे एक छंद रुप में भी स्वीकार कर कई प्रयोग किये जा चुके हैं व किये जा रहे हैं । हाइकु विधा पर इन प्रयोगों की प्रारंभिक कड़ी में आ. नलिनीकांत जी, डाॅ. सुधा गुप्ता जी, डाॅ. मिथिलेश दीक्षित जी, शैल जी, आ. रामनारायण पटेल जी का नाम अग्रिम पंक्ति में है । प्रयोग अच्छी बात है, परंतु ध्यान की आवश्यकता है कि इन प्रयोगों से हाइकु की आत्मा पर किसी प्रकार का कुठाराघात न हो ।

        हाइकु विधा में प्रयोग के दौरान इस पर कविता, गीत, गजल, रुबाई आदि पर  संप्रेषणीयता के साथ लेखन किये जा रहे हैं, इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ हाइकुकार देवेन्द्रनारायण दास जी का 68 पृष्ठीय हाइकु मुक्तक संग्रह "देहरी पे सूरज" का प्रकाशन निश्चय ही हाइकुकारों में सुखद अनुभूति का संचार करता है । पूजा ग्राफिक्स बसना द्वारा  पुस्तक की बेहतरीन छपाई एवं आकर्षक आवरण पृष्ठ मन मोह रहा है । संग्रह में रचनाकार द्वारा बड़ी तल्लीनता से रचे गये 136 उत्कृष्ट हाइकु मुक्तक सन्निहित हैं । संग्रह को हाइकु जगत की विदूषी वयोवृद्ध हाइकु कवयित्री आ. सुधा दीदी का आशीष प्राप्त होना भी संग्रह के सौभाग्य का विषय है । सत्साहित्य की साधना में लीन, संघर्षशील रचनाकार आदरणीय देवेन्द्रनारायण दास जी के श्रम की मुक्तक रचनाएँ अपूर्व शांति पहुँचाते हुए पाठक के मन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती हैं ।

        संग्रह में बहुत से मुक्तक बेहद प्रभावी बन पड़े हैं, जो मन को सहज उद्वेलित कर रहे हैं । 

मुक्तक की एक बानगी देखें ------

   जलती रही/सुधियों की कंदील/तुम न आये ।

   सितारों वाली/रात ढलती रही/तुम न आये ।

   सावनी रात/सुलगती रहती/प्राण की बाती ।

   याद आती है/तुम्हारी प्यारी बातें/तुम न आये ।।

        (पृ.क्र. 02, मुक्तक क्र. 03)

      संग्रह की मुक्तक रचनाओं में रचनाकार के वैयक्तिक भाव से ले कर सामाजिक व राष्ट्रप्रेम की भावनाओं के साथ साथ रचनाकार की अंतः पीड़ाएँ, उनके सिसकते हुए मन की दशा, उनके अंतः मन की आवाज, उनकी लेखकीय तन्मयता, प्रकृति के सौंदर्य का सुंदर मानवीकरण, नित नवीनता का समर्थन, ईश्वरीय सौदर्य तथा ईश्वर के प्रति उनकी गहरी आस्था, कहीं आशा तो कहीं निराशा,  समाज को मानवता के संदेश, दिलों में प्रेम संचार, स्मृतियों की महक के प्रसार, मौसम के मनमोहक अनुबंधों के साथ मादक छंदों के सृजन, शब्द ब्रह्म के प्रति कवि की निष्ठा प्रदर्शन, आदि-आदि रचनाकार के मुखरित स्वर संग्रह को जीवट प्रदान करने हेतु पूर्ण सक्षम हैं ।

       निष्कर्षतः सार रुप में कहना चाहूंगा कि "देहरी पे सूरज" आदरणीय देवेन्द्रनारायण जी द्वारा रचित उत्कृष्ट मानसिक व प्राकृतिक बिम्बों की भरपूर रचनाओं का महत्वपूर्ण संग्रह है । हाइकु मुक्तक के इस सफल संग्रहण के रचनाकार परम आदरणीय देवेन्द्रनारायण दास जी को उनके इस उत्कृष्ट व अनुपम संग्रह के प्रकाशन की ढेर सारी शुभकामनाएँ व बधाई देते हुए पाठक वर्ग से अपने ज्ञान की वृद्धि हेतु इस पुस्तक को अवश्य पढ़ने की अपील करता हूँ ।

   प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

  साहित्य प्रसार केन्द्र साँकरा,

   जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

  पिन - 496554

   pkdash399@gmail.com

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