हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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मंगलवार, 13 अगस्त 2019

हाइकु कवयित्री डॉ. सुरंगमा यादव जी के हाइकु

हाइकु कवयित्री 

डॉ. सुरंगमा यादव 

हाइकु 


भावों का रेला
कंपित हैं अधर
बीते न बेला ।

आँख ज्यों खुली
उषा खड़ी थी पास
विहँसी कली ।

पीड़ा का सिन्धु 
नैनों में बन मेघ
बरसा खूब ।

जग की लीला
जीवन का अस्तित्व 
रेत का टीला ।

बड़ी लकीर
छोटी कर दूँ कैसे!
उलझे सब ।

मन हिरन
उलझनें शिकारी
जाल बिछातीं ।

गिरा जो आँसू 
वृक्ष से टूटा पात
न लौटा पास ।

वक्त पे काम
आराम ही आराम 
तनाव मुक्ति  ।

मन के छाले
मरहम का लेप
फिर भी हरे ।

चन्दा है दूर
सागर मजबूर
करे क्रन्दन ।

□  डाॅ. सुरंगमा यादव

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