हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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शनिवार, 10 अगस्त 2019

हाइकुकार डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव जी के हाइकु


हाइकुकार 

डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव 

हाइकु 


छाँह जहाँ है
धूप वहाँ होनी है
क्यों निराश रे !
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मरु जीवन 
संवेदना विहीन 
अजल घन ।
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सृजन मेरा
चुक नहीं सकता 
कल्पतरू है ।
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सहती धरा
सहता है आकाश
हम भी सहें । 
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मंथन करो
जीवन है सागर 
पा लो अमृत ।
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चाँदनी स्नात 
विजन में डोलता 
मंद सुवात ।
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सरसों फूले 
धरती दिख रही 
पीत वसना । 
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□ डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव 

अलीगंज, लखनऊ (उ.प्र.)

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