हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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गुरुवार, 1 अगस्त 2019

हाइकु : सूर्यकरण सोनी "सरोज "


हाइकुकार 

सूर्यकरण सोनी "सरोज"

हाइकु 


गूँगे की पीर
दिल में चुभ गई
बन के तीर ।

बुरा है दौर
लूट के चल दिये
दिन में चोर ।

दीन-अनाथ 
मिले जब पथ में
दे देना साथ ।

है पंचभूत
क्षिति,जल,पावक
नभ-मारुत ।

करे त्राटक
स्वाती बूँद को पाने
पक्षी चातक ।

क्रोध गरल
पीकर ही जीवन
होगा सरल ।

रेत के धोरे
तेज पवन संग
उड़ने दौड़े ।

देसी हकीम
कड़वा है कुनैन
करेला-नीम ।

कीट-पतंग
प्रणय में जलते
दीपक संग ।

ज्ञान का घड़ा
भीतर लिए होता
सागर बड़ा ।

बात निराली
फल लगने पर
झुकती डाली ।

भरने पेट
छोटू ढ़ाबे पे धोता
कप व प्लेट ।

खेतों में खाद
उपज बढ़ी पर
अन्न बेस्वाद ।

कफन श्वेत
चढ़ने से पहले
मनवा चेत ।

क्षत-विक्षत
संदूक में हो गए
प्रेम के खत ।

ताल को पाट
दलालों ने बिछा दी
अपनी खाट ।

सूर्य का रथ
जगती को बताये
मृत्यु का अर्थ ।

सत्य चिरायु
क्षण भर की होती
झूठ की आयु ।

समुद्री द्वीप
बलखाती लहरें
मित्र समीप ।

क्षितिज बिंदु
गगन से मिलता
विशाल सिंधु ।

विशिष्ट ज्ञान
पत्तियाँ विटपों की
है पहचान ।

जीवन गाड़ी
सबको चढ़ना है
ऊँची पहाड़ी ।

दाने की खोज
गिलहरी करती
श्रम से रोज ।

पेड़ बबूल
तन पर लिये है
हज़ारों शूल ।

पत्तियाँ प्यारी
सौंदर्य की रक्षक
घृतकुमारी ।

धान की बाली 
भरती कृषक की
झोली व थाली ।

क्षणिक कोप
पल में हो जाता
बुद्धि का लोप ।

सबसे आला
जगती में केवल
प्रेम का प्याला ।

शिक्षा की धूप
मानव को बनाती
देव स्वरूप ।

□ सूर्यकरण सोनी
'सरोज'

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