हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

हाइकु कवयित्री अलका पाण्डेय जी के हाइकु


हाइकु कवयित्री 

अलका पाण्डेय

हाइकु


मेघ गरजे
मन झूम के नाचे
पैर थिरके ।

प्यासी धरती
गले मिली बूँदों से
चैन है पाया ।

ऋतु वंसत
हंस रही कलियाँ
धरा शोभित ।

पड़ती बूँदें
धरा के होठ तृप्त
पृथ्वी थिरके ।

सब पे भारी
क़लम है चिंगारी
सच दर्शाती ।

धरा उजाड़
ग़ायब हरियाली
विरान जग ।

कड़क धूप
घूँघट में जलता
छोरी का रुप ।

जेठ का माह
अंगार बरसते
प्रचंड घाम ।

पारा है चढ़ा
झुलसायी शाम है
रात अंधेरी ।

जलता तन
गरम लू बहती 
तीर सी लगे ।

गर्मी प्रचंड
सिसकती धरती
जीव लाचार ।

बरसों मेघ
तृप्त हो वसुंधरा
तरु डोलते ।

शुद्ध समीर
झुला झुलायें हवा
जीवन डोर ।

बहारें आई
महकती पवन
उल्लास छाया ।

आंतकी वार
दहशत  की जंग
शत्रु संहार ।

मन का भय
जीने न दे चैन से
लब है मौन ।

शीत लहर
ओस मोती बिखरे
कोहरा छाया ।

सूरज सोया
जल रहे अलाव
ठिठुरी रातें ।

गिरती ओस
दाँत कटकटाते
शीत प्रहार ।

धुँध घनेरी
ओस बनाये मोती
शीतल भोर ।

सर्द हवायें
गर्म चाय का प्याला
मिठी चुभन ।

शीत यामिनी
साजन का मिलन
लजाती ठंड ।

शरदऋतु
कोहरे की चादर
अंधेरी रात ।

पूस की रात
कड़कड़ाती आंते
गर्मी को चाहे ।

यादों के लम्हे
पीपल छांव तले
बावरा मन ।

ठंड की रात
आसरा फुटपाथ
चिंता की बात ।

शीत मौसम
त्रस्त हुआ जीवन
अलाव जला  ।

गर्मी की भोर
बढ़ाती जाती ताप
तन बेहाल ।

चिलचिलाती
धूप गर्म हवा ये
प्राण हरित ।

तपता तन
भास्कर है प्रचंड
धधके मन ।

शुभ्र चाँदनी
अमृत बरसाये
पूर्णिमा आई ।

□ अलका पाण्डेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH