हाइकु कवयित्री
अलका पाण्डेय
हाइकु
मेघ गरजे
मन झूम के नाचे
पैर थिरके ।
प्यासी धरती
गले मिली बूँदों से
चैन है पाया ।
ऋतु वंसत
हंस रही कलियाँ
धरा शोभित ।
पड़ती बूँदें
धरा के होठ तृप्त
पृथ्वी थिरके ।
सब पे भारी
क़लम है चिंगारी
सच दर्शाती ।
धरा उजाड़
ग़ायब हरियाली
विरान जग ।
कड़क धूप
घूँघट में जलता
छोरी का रुप ।
जेठ का माह
अंगार बरसते
प्रचंड घाम ।
पारा है चढ़ा
झुलसायी शाम है
रात अंधेरी ।
जलता तन
गरम लू बहती
तीर सी लगे ।
गर्मी प्रचंड
सिसकती धरती
जीव लाचार ।
बरसों मेघ
तृप्त हो वसुंधरा
तरु डोलते ।
शुद्ध समीर
झुला झुलायें हवा
जीवन डोर ।
बहारें आई
महकती पवन
उल्लास छाया ।
आंतकी वार
दहशत की जंग
शत्रु संहार ।
मन का भय
जीने न दे चैन से
लब है मौन ।
शीत लहर
ओस मोती बिखरे
कोहरा छाया ।
सूरज सोया
जल रहे अलाव
ठिठुरी रातें ।
गिरती ओस
दाँत कटकटाते
शीत प्रहार ।
धुँध घनेरी
ओस बनाये मोती
शीतल भोर ।
सर्द हवायें
गर्म चाय का प्याला
मिठी चुभन ।
शीत यामिनी
साजन का मिलन
लजाती ठंड ।
शरदऋतु
कोहरे की चादर
अंधेरी रात ।
पूस की रात
कड़कड़ाती आंते
गर्मी को चाहे ।
यादों के लम्हे
पीपल छांव तले
बावरा मन ।
ठंड की रात
आसरा फुटपाथ
चिंता की बात ।
शीत मौसम
त्रस्त हुआ जीवन
अलाव जला ।
गर्मी की भोर
बढ़ाती जाती ताप
तन बेहाल ।
चिलचिलाती
धूप गर्म हवा ये
प्राण हरित ।
तपता तन
भास्कर है प्रचंड
धधके मन ।
शुभ्र चाँदनी
अमृत बरसाये
पूर्णिमा आई ।
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