हाइकु कवयित्री
कंचन अपराजिता
हाइकु
1.
मेघ चंचल
लहराये गोरी के
खुले कुंतल ।
2.
बैठा बुज़ुर्ग
पोटली दवा संग
सूना मकान ।
3.
ताल तल पे
बूँद करती नर्तन
प्रीत अर्पण ।
4.
कस्तूरी मृग
भौतिकता के पीछे
जन के पग ।
5.
संध्या आरती
सरहद पर गूँजे
जय भारती ।
6.
बढ़ते जन
उँचे होते सदन
घटते वन ।
7.
कागजी फूल
ढ़ूंढ़ रही तितली
पुष्प पराग ।
8.
तपती रेत
मजदूर स्त्री देखे
पैर के छाले ।
9.
ओंठों पे हँसी
ढँक रहे तन के
नीले निशान ।
10.
आर्थिक व्यथा
वेतन चंद्र कथा
घटता चाँद ।
~ • ~
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें