हाइकु कवयित्री
डॉ. सुरंगमा यादव
हाइकु
भूल तपन
छाँव बन सघन
ओ मेरे मन !
विदा की बेला
नयनों में उमड़ा
मेघों का मेला ।
यादों का साया
तपते जीवन को
देता है छाया ।
बड़े चंचल
ठहरते ही नहीं
सुख के पल ।
सुनाते नैन
हृदय का क्रन्दन
अधर मौन ।
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