हाइकुकार
डाॅ. राजेन्द्र वर्मा
हाइकु
धुनी कपास
लिहाफ़ पे सुस्ताते
मेघ के छौने ।
सावन लगा
वसुन्धरा को मिली
हरी चादर ।
बादल घिरे
खोल रहा मयूर
अपने पंख ।
अंकुर फूटा
धूप लायी कलेवा
दुलारे हवा ।
गेहूँ के बीच
मटर की छीमियाँ
झूलतीं झूला ।
शीत की भोर
चीड़ पहने खड़ा
बर्फ़ का कोट ।
डूबता सूर्य
अलसाया बालक
माँ की गोद में ।
सीप निराश
बूँद चल पड़ी है
मरु की ओर ।
चन्द्रमा टेढ़ा
नज़र नहीं आती
तारों की टोली !
पौ फट रही
सुर पाखी ने छेड़ी
राग भैरवी ।
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□ डॉ. राजेन्द्र वर्मा
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