हाइकुकार
गंगा प्रसाद पांडेय "भावुक"
हाइकु
ये अति वृष्टि
प्रकृति प्रकोपित
ढहते घर ।
उफनी नदी
दिखे न दोनों पाट
गांव ही साफ़ ।
ये रिम झिम
बूंदें कब टूटेंगी
व्याकुल पक्षी ।
दाना न मिले
बरसे सिर्फ पानी
गाय रंभाये ।
कच्चा मकान
गिर गया दालान
मरी बकरी ।
माँ की ही कृपा
सबको मिली धरा
फिर भी मारा ।
बुजुर्ग माई
खत्म हुयी दवाई
सूखी खटाई ।
माँ की इज्जत
बहू करे न बेटा
चाहें कीमत ।
माँ जैसे मरी
सब ढूढें गहना
साझे की अर्थी ।
माता की सेवा
विरले ही करते
ढूंढे न मिलें ।
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