हाइकुकार
डॉ. महावीर सिंह
हाइकु
बहुत भाती
सोंधी गंध सुहाती
गांव की माटी ।
वे जी लें अभी
मैं तो जी लूंगा बाद
मरने के भी ।
वत्सला संध्या
ममतीली गोधूलि
रंभाते बच्छ ।
संध्या ठिठकी
बालियों की नोंक पे
क्षणिक मात्र ।
चूड़ी खनके
पिया मन बहके
रह रहके ।
कच्ची उमर
कमरतोड़ बोझ
नाजुक कंधे ।
उम्र ढलती
मन की पिपासायें
नहीं मरती ।
साँस इकाई
जीवन भर मापे
उम्र लंबाई ।
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□ डॉ. महावीर सिंह
एम-23, इन्दिरा नगर
रायबरेली (उ.प्र.)
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