हाइकु कवयित्री
सुशीला साहू
हाइकु
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मेघा बरसी
भीगी सारी धरती
फसल उगी ।
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किसान सूनी
अन्न का भोग सुखी
बंजर भूमि ।
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सरिता बही
नमी हवा ने सोखी
पहाड़ ऊँची ।
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घटा है काली
छा गए हैं बदली
हवा है चली ।
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मिलो भी जहां
सागर की गर्त में
अलग कहाँ ।
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□ सुशीला साहू "शीला"
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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