हाइकु कवयित्री
वृंदा पंचभाई
हाइकु
शरद ऋतु
धवल शीतलता
बिखेरे विभु ।
पूरनमासी
किशन राधा संग
नाचे गोकुल ।
शशि बिखेरे
शुभ्र धवल आभा
हर्षित धरा।
रास रचाए
मदमस्त झूमता
शरद रात ।
शरद पून्नी
अमृत बरसाए
चंद्र धरा पे ।
शरद चंद्र
खुशियाँ बरसाए
स्वाति की बूंद ।
आस लगाये
ये चकोर ताकता
स्वाति की बूंद ।
टपके खुशी
शरद चंद्र संग
नभ से आज ।
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□ वृंदा पंचभाई
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