हाइकु कवयित्री
अलका पाण्डेय
हाइकु
मासूम कली
हवस की सेज पे
खोती आबरु ।
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मयंक तुम
चाँदनी गोद धर
मिटाते तम ।
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विधु धवल
धरा का आंलिगन
सुधा बरसें ।
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बीमार बुढ़ा
पुत्र गया लंदन
बाट जोहता ।
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दवा दुकान
मेज़ पर सजाई
बीमारी लड़ें ।
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यादों के क़िस्से
ज़ख़्म बने नासूर
सहा न जाये ।
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मन उदास
दिल में बसा तम
हो रही टीस ।
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नभ से ताके
श्वेत चादर ओढ़
विधु धवल ।
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मन की आशा
ख़्वाब हैं बहुतेरे
रात घनेरी ।
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गाँव से भागे
शहर ने निगला
मशीनी पुर्ज़ा ।
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