हाइकु कवयित्री
सुधा राठौर
हाइकु
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पैनी है धार
हड्डियों में उतरी
शीत कटार ।
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कम्पित गात
अधरों पे थिरका
शास्त्रीय गीत ।
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जमने लगी
लहू की रवानियाँ
देह ठिठुरी ।
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आज़ाद हुए
स्वेटर रजाइयाँ
संदूक खुले ।
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सुखद समां
मौसम का कारवां
हो रहा जवां ।
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□ सुधा राठौर
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