हाइकुकार
कश्मीरी लाल चावला
हाइकु
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हुई हैरानी
मन का शीशा देख
बदले रूप ।
सिमट गई
शीत लहर बीच
आधी जिंदगी ।
सिमट गई
शीत लहर बीच
आधी जिंदगी ।
कटी जिंदगी
जो धूप छाँव बीच
यही जिंदगी ।
मन की आशा
जग की अभिलाषा
एक जो भाषा ।
रंगों की छाया
जो बनी परछाई
ढलती काया ।
काली रात में
तारे गिन के सोया
आया न चाँद ।
तितली आगे
जिंदगी की दौड़ है
भंवरा पीछे ।
जले चिराग
एक मजार पर
बाँटता यादें ।
एक बूंद हूँ
बस फैल जाऊँ तो
समुंदर हूं ।
महंगी दोस्ती
काँटे रखे गुलाब
हाथों में चुभे ।
मस्त पवन
तन छूता सावन
अधूरी प्यास ।
मन का घेरा
जीवन तेरा मेरा
चार चुफेरा ।
मन की पीड़ा
अथाह समुंदर
तैरे सो डूबे ।
जला के रखा
जो मन का चिराग
दूर अंधेरे ।
छोह के चाँद
कहे मंजिल पाई
अंत है दूर ।
नया जो साल
खुशियों के अंबार
भर लो थाल ।
□ कश्मीरी लाल चावला
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