हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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रविवार, 29 दिसंबर 2019

~ हाइकुकार कश्मीरी लाल चावला जी के हाइकु ~

हाइकुकार

कश्मीरी लाल चावला


हाइकु 
--0--

हुई हैरानी
मन का शीशा देख
बदले रूप ।

सिमट गई
शीत लहर बीच
आधी जिंदगी ।

कटी जिंदगी
जो धूप छाँव बीच
यही जिंदगी ।

मन की आशा
जग की  अभिलाषा
एक जो भाषा ।

रंगों की छाया
जो बनी परछाई
ढलती काया ।

काली रात में
तारे गिन के सोया
आया न चाँद ।

तितली आगे
जिंदगी की दौड़ है
भंवरा पीछे ।

जले चिराग
एक मजार पर
बाँटता यादें ।

एक बूंद हूँ
बस फैल जाऊँ तो
समुंदर हूं ।

महंगी दोस्ती
काँटे रखे गुलाब
हाथों में चुभे ।

मस्त पवन
तन छूता सावन
अधूरी प्यास ।

मन का घेरा
जीवन तेरा मेरा
चार चुफेरा ।

मन की पीड़ा
अथाह समुंदर
तैरे सो डूबे ।

जला के रखा
जो मन का चिराग
दूर अंधेरे ।

छोह के चाँद
कहे मंजिल पाई
अंत है दूर ।

नया जो साल
खुशियों के अंबार
भर लो थाल ।

□  कश्मीरी लाल चावला

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