हाइकुकार
अशोक कुमार ढोरिया
हाइकु
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अंगूठा टेक
अनपढ़ अनेक
रहे न एक ।
टलाओ युद्घ
कभी न होना क्रुद्ध
कहते बुद्ध ।
घायल पंछी
दर्द में कराहता
दवा चाहता ।
आई बसंत
मौसम की बहार
छा गई मस्ती ।
प्रवासी पक्षी
कुछ दिन का डेरा
रैन बसेरा ।
मन में खोट
भूखे बैठे माँ बाप
संस्कार कहाँ ।
देख तितली
महके उपवन
हर्षित भौंरे ।
दिल से जुड़े
ये अनजान रिश्ते
बने फ़रिश्ते ।
अच्छे लगते
ये अनजान रिश्ते
गले मिलते ।
मन्दिर पूजा
आडम्बरों की ओट
मिले न राम ।
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□ अशोक कुमार ढोरिया
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