हाइकु कवयित्री
डॉ. सुरंगमा यादव
हाइकु
--0--
फेंका तेजाब
मानवता किससे
माँगे हिसाब ।
कौआ हर्षाये
मानव ने सीख लीं
मेरी चेष्टाएं ।
विवश मन
खींचती बरबस
दुर्बल नस ।
आया वसंत
सहमे वन पात
विदाई पास ।
कस्तूरी पास
विधि की विडम्बना
है तरसना ।
भेजूँ संदेश
वसंती हवा संग
पिया विदेश ।
स्मृति झरोखा
दूर तक दिखते
दृश्य अनेक ।
विदा की घड़ी
नयनों की देहरी
आँसू ने छोड़ी ।
---0---
□ सुरंगमा यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें