हाइकुकार
डाॅ. आनन्द प्रकाश शाक्य "आनन्द"
बसंत के हाइकु
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वाह ! वसंत
ये धरती शोभित
मन मोहित ।
ठुमका गैंदा
गुलाब है महका
वाह ! वसंत।
ये पतझर
होता नवजीवन
अश्रु न भर ।
ये मंजरियाँ
महकें महकायें
दसों दिशायें ।
मन महके
ये समीर बहके
तन चहके ।
फूली सरसों
उड़े मधुमक्खियाँ
लेती पराग ।
करो मंगल
गरीब की कुटी में
हे ! ऋतुराज ।
लो मुस्कराया
पलाश बनकर
वसंत आया ।
सजा दो माँग
विधवा महिला की
हे ! ऋतुराज ।
गाता प्रणय
बाबरा है वसंत
बहका सन्त ।
वो मन तौलें
दम्पति हौले-हौले
करें किलोलें ।
कोकिला बोली
उपवन चहका
मधु सा घोली ।
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