हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

~ हाइकुकार लक्ष्मीकांत मुकुल जी के हाइकु ~


हाइकुकार 

लक्ष्मीकांत मुकुल 


हाइकु
--0--

उड़े हैं धूल
भेड़ें औे ' गड़ेरिए
चले हैं साथ ।

लहराया है
तीसी - फूलों - सा तेरा
नीला आंचल ।

बेर तोड़ते
फंसी साड़ी कांटों में 
खट्टा - सा मन ।

आती है याद
नदी - तट - पोखर 
तुम थी साथ ।

माघ - तुषार
भीगीं आंखें यादों की
प्रिया - बिछोह ।

आया वसंत
नहीं कूकी कोयल
अंतर्मन में ।

शहर आते
खोयी पगडंडी - सी
गांव की यादें ।

आतुर बालें
निकली हैं खेतों में
ढका सिवान ।

बीत चुका है
समय धुंधलका
उगी है लाली ।

कोयल कूकी
नहीं टूटा सन्नाटा
मन माटी का ।

उगा पहाड़
खेतों के आँगन में
पाथर-टीला ।

नदी बीच में
पूरा गाँव-गिराँव
रेत किनारे ।

किसे  ढूंढती
फुदकती चिड़़िया
बांस-वनों में ।

फुदकते हैं
खरहे की तरह
मेरे सपने ।

शिरीष-फल
बजा रहे खंजडी
बीते युग की ।

उड़ चले हैं
छोर से पंक्तिबद्ध
बकुल-झुंड ।

डाक पत्र में
नहीं अटा जीवन
मेरी व्यथा का ।

उड़े रूमाल
सहेजा जो सालों से
किनके नाम ?

बिदक गई
सब दुनिया सारी
पोत डूबते ।

--00--

□  लक्ष्मीकांत मुकुल 
ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड,
भाया – धनसोई , बक्सर,
(बिहार) – 802117

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

MOST POPULAR POST IN MONTH