हाइकुकार
ऋतुराज दवे
हाइकु
(1)
मोती से भाव
शब्दों के सागर में
तैरें विचार ।
(2)
नौकाएँ बन
आसमाँ के सागर
तैरते घन ।
(3)
भटकी राह
ईच्छाओं के सागर
मन की नाव ।
(4)
रत्नों से भरे
सागर या जीवन
दोनों गहरे ।
(5)
रवि को देख
सागर की बाहों में
फिसले मेघ ।
(6)
प्रेम कीमती
हृदय के सागर
भावों के मोती ।
(7)
सागर भेजे
बादल उपहार
धरा के पास ।
(8)
सागर सार
रत्नो का उपहार
निगला खार ।
(9)
शर्म का बोध
पश्चाताप सागर
डूबता क्रोध ।
(10)
तैरते सारे
काले सागर में
दीपक तारे ।
---0---
□ ऋतुराज दवे
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