हाइकु कवयित्री
डाॅ. सुरंगमा यादव
हाइकु
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पत्र विहीन
सहमीं-सी डालियाँ
लगतीं दीन ।
मौन क्रंदन
सुनता प्रतिध्वनि
व्याकुल मन ।
दुःख पहाड़
अभिव्यक्तियाँ मौन
झरते नैन ।
रेत में पाँव
वेगवती लहरें
टक्कर मारें ।
लिखो तो सही
संवेदना के गीत
गायेगी सदी ।
रखते वीर
तरकश में तीर
सोच के साधें ।
अधिक मीठा
कड़वा-सा लगता
थोड़ा हो तीखा ।
झड़ीं पत्तियाँ
अनमनी डालियाँ
सूनी है गोद ।
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□ सुरंगमा यादव
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