हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

शुक्रवार, 19 जून 2020

~ हाइकु कवयित्री साधना कृष्ण जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

साधना कृष्ण 


हाइकु 
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सावन आया
विहँसे भू पहन
हरा वसन ।

उदास पाखी
तलाश रही पानी
सुखी नदियाँ ।

जीवन गति
मौन अनवरत
करती काम ।

सपने मेरे
शीश महल सम
टूटे बिखरे  ।

गीतिका गंध
मदहोश अंतस
भावाविभोर ।

नेह का धन
बेसुमार पास जो
कैसी गरीबी ।

बहती नदी
बस यही कहती
चलते रहो ।

उफनी नदी
कहती रही सदा
धीर रे मन ।

सूखी नदियाँ
जल में प्यासी
भोगती सजा ।

पड़ते रज
बोल उठा पाषाण
ताड़े मुझको ।

सोचे  पाषाण
कलकल नदियाँ
प्यास बुझाती ।

ख्वाहिश बुने
परिंदे बैठ अपने
सुघर नीड़ ।

नन्ही चिड़िया
उडती गगन में
सोती घोंसला ।

नयन करे
बेहद मनमानी
हो बदनामी ।
     
रीत पुरानी
रखना बचा कर
आँखों का पानी ।

बाली धान की
खेतों में खुशहाली
हुलसे मन ।

मंद पवन 
बहे  चहुँ ओर ही
कम्पित तन ।

उतरी प्राची
बिखरी चहुँ ओर
स्वर्णकिरण ।

□ साधना कृष्ण

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