हाइकुकार
राजकुमार चौहान "भारतीय"
हाइकु
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धरा थी मौन
घेरा है विपदा ने
दोषी है कौन ।
कहा सलाम
हैं साजिशें दिल में
प्यार धड़ाम ।
ये तानाबाना
रखा ही रह जाना
भजो राम रे ।
तू दयालु है
उबारेगा बला से
मैं अकिंचन ।
भूला नहीं मैं
याद मुझे तू रख
मत परख ।
तम धड़ाम
पूर्व से सूरज का
हुआ सलाम ।
उगा सूरज
एक आस जगी है
भागेगा तम ।
सुख औ दुख
दो किनारे हैं साथ
सिखाते ज्ञान ।
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□ राजकुमार चौहान "भारतीय"
शिवपुरी (म.प्र.)
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