हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

सेदोका की सुगंध (सेदोका संकलन की समीक्षा)


साहित्य वाटिका में बिखरी-'सेदोका की सुगंध’


Pradeep kumar Dash "Deepak"
● Sedoka ki Sugandh ( सेदोका की सुगंध )
   A collection of SEDOKA poems. [2020]
● Publisher : Utkarsh prakashan Delhi.
● Price : ₹ 400

        

      हाइकु,ताँका,चोका,सेदोका आदि जापानी काव्य विधाएँ हिन्दी काव्य साहित्य की लोकप्रिय विधाओं के रूप में प्रतिष्ठित हो रही हैं।हाइकु व ताँका के पश्चात अब धीरे-धीरे सेदोका संग्रह की संख्या भी बढ़ने लगी है।हिन्दी सेदोका संग्रह की श्रृंखला ‘अलसाई चाँदनी’ 2012,संपादक -रामेश्वर काम्बोज, भावना कुअँर एवं हरदीप कौर सन्धू से आरंभ हुई।इसके पश्चात उर्मिला अग्रवाल, देवेन्द्र नारायण दास,डाॅ रमाकांत श्रीवास्तव, डाॅ मिथिलेश दीक्षित, डाॅ सुधा गुप्ता, भावना कुँअर ,मनोज सोनकर तथा प्रदीप कुमार दाश'दीपक' तथा कृष्णा वर्मा के एकल सेदोका संग्रह प्रकाशित हुए हैं। जापानी काव्य विधाओं के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करने वालों में प्रदीप कुमार दाश का प्रमुख स्थान है। आप सृजन -संपादन दोनों प्रकार से जापानी काव्य विधाओं को हिन्दी काव्य साहित्य  में लोकप्रिय बनाने तथा साहित्य की अभिवृद्धि में निरत हैं। आपके संपादन में सद्यः प्रकाशित ‘सेदोका की सुगंध ‘ एक महत्वपूर्ण कृति के रूप में प्रकाशित हुई  है। यद्यपि सेदोका संग्रह की संख्या अभी उँगलियों पर ही है,परन्तु सुखद बात यह है कि धीरे-धीरे इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। 
            ‘सेदोका की सुगंध ‘ साझा संग्रह दो खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में अकारादि  क्रम से 55 रचनाकारों के सचित्र परिचय के साथ उनकी बीस-बीस सेदोका रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। द्वितीय  खण्ड में अकारादि क्रम से 155 रचनाकारों की एक-एक सेदोका रचनाओं को प्रकाशित  किया गया है।देशभर के नवोदित एवं प्रतिष्ठित 210 रचनाकारों की कुल 1255 सेदोका रचनाओं को संकलित करके प्रकाशित  करने का श्रमसाध्य कार्य करने के लिए प्रदीप कुमार  दाश ‘ दीपक’ जी को बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद!
     इस संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता- विषय वैविध्य है।कवियों के संवेदन ने विभिन्न विषयों का स्पर्श किया है।संग्रह में प्रेम-भावुकता,प्रकृति-चित्रण,आस्था-विश्वास,आशावादिता तथा सामाजिक सरोकार इत्यादि हर विषय पर उत्कृष्ट रचनाएँ संकलित की गयी हैं। इन रचनाओं में काव्यतत्त्व सर्वत्र व्याप्त है।विषय की दृष्टि से देखें तो प्रेम विषयक अनेकानेक सेदोका रचनाएँ इस संग्रह की शोभा बढ़ा रही हैं।प्रेम सृष्टि का आदि तत्त्व है।प्रेम की अनुभूति मनुष्य के मन को सकारात्मक  बनाती है,तथा दूसरों के सुख-दुःख में सहभागी होने का भाव जाग्रत करती है।प्रेम विहीन जीवन शुष्क व नीरस होता है ।अपनी उदासीनता के कारण व्यक्ति में दूसरों के प्रति संवेदन की कमी हो जाती है। प्रेम एक ऐसा भाव है जो  उदारता, सहिष्णुता , संवेदनशीलता  आदि भाव भी जाग्रत करता है।प्रेम का बंधन एक बार बँध जाये तो सहज तोड़ा नहीं जाता।डाॅ उर्मिला अग्रवाल लिखती है-
कैसे तोड़ोगे/वह माला जिसमें/बसी है गंध मेरी/फूलों की नहीं/यह माला है मेरे/मन के मनकों की।(पृ041)
     प्रेम के कई रूप होते हैं, पावन और सच्चा प्रेम अपने हर रूप में पूजनीय है। संतान के प्रति माता-पिता का प्रेम वात्सल्य कहलाता है।प्रेम का यह एक ऐसा रूप है ,जो सदा निष्कलंक-निःस्वार्थ होता है। प्रदीप दाश ने  माँ की महिमा पर सुन्दर सेदोका रचा है-
     माँ केवल माँ/नहीं चाहिए  उसे/व्यर्थ कोई उपमा/गुम जाती है/’उप' उपसर्ग से/सदा माँ की महिमा।(पृ0 82) 
जापानी काव्य विधाओं में प्रकृति का विशेष महत्व है।इस संग्रह  में प्रकृति विषयक अनेकानेक सेदोका प्रकृति के सामीप्य  का अहसास कराते हैं।डाॅ सुधा गुप्ता की सेदोका रचनाओं में प्रकृति के नाना रूप देखने को मिलते हैं।मानवीकरण की छटा दर्शनीय है-
 मेघों ने मारी /हँस के पिचकारी/भीगी धरती सारी/झूमे किसान/खेतों में उग आई/वर्षा  की किलकारी (पृ0 154)।
रचनाकार अपने परिवेश के प्रति जागरूक होता है।वह सामाजिक सरोकारों से असंपृक्त नहीं रह सकता।वास्तव में सम-सामयिक स्थितियों पर लेखनी चलाना कवि-लेखक का उत्तरदायित्व भी है।साहित्य समाज का पथ आलोकित करने वाले ज्योतिपुंज के समान होता है।कन्या भ्रूण हत्या पर डाॅ सतीश चंद्र शर्मा ‘सुधांशु का सेदोका दर्शनीय है-
     कन्या भ्रूण को/गर्भ में नष्ट करे/वह माता क्रूर है/सृष्टि का चक्र/अपना ही अंश है/यह भावी वंश है (पृ0148)।
सत्साहित्य वही होता है ,जो आशा,आस्था व विश्वास से परिपूर्ण हो।निराश जीवन में आशा का संचार करना साहित्य  की प्रमुख विशेषताएं में से एक है। संग्रह के अनेकानेक सेदोका इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।डाॅ मिथिलेश दीक्षित का सेदोका दृष्टव्य है-
     बड़े जहाज/डूबते कई बार/बीच ही मझधार/छोटी-सी नाव/नहीं मानती हार/किया करती पार(पृ0111)।
  जिस प्रकार  घने अंधेरे में दूर कहीं जलता एक छोटा-सा दीपक मन में आशा व साहस का संचार कर देता है ,ठीक उसी प्रकार दुःख के समय छोटी-सी उम्मीद भी दुःख से उबरने में बड़ा सहारा बनती है डाॅ सुरंगमा यादव की पंक्तियाँ है-
    घना अंधेरा/दूर कहीं जलता/छोटा-सा एक दीप/देता मन को/उजियारे से ज्यादा/आशा और सहारा(पृ0160)।
 ‘सेदोका की सुगंध ‘ में रचनाओं का चयन बहुत ही सोच-समझकर किया गया है, उत्कृष्ट रचनाओं को स्थान देने के कारण यह संग्रह अपने-आप में विशेष है।सभी का उल्लेख संभव नहीं है।द्वितीय खण्ड में रचनाकारों का एक-एक सेदोका है,वहाँ भी चयन प्रशंसनीय है।निश्चय ही यह संग्रह सेदोका विधा के प्रचार-प्रसार व सुप्रतिष्ठित करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा।

         डाॅ सुरंगमा यादव 

    असि0प्रो0 हिन्दी

    महामाया राजकीय महाविद्यालय, महोना, लखनऊ

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