हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

भावों की कतरन (विश्व का प्रथम कतौता संग्रह)

 भावों की कतरन (विश्व का प्रथम कतौता संग्रह)


Pradeep Kumar Dash "Deepak"

● BHAVO KI KATRAN (भावों की कतरन) 

      (FIRST KATAUTA COLLECTION IN WORLD)

●  Ayan prakashan, Delhi 

● Edition First : JANUARY-2021

● Price : ₹ 240/--

● ISBN : 978-93-89999-70-9

● Availability :

      • pkdash399@gmail.com

      • Ayan prakashan Delhi


             श्री प्रदीप कुमार दाश 'दीपक' जी विभिन्न जापानी छंद विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। जिस तरह डॉ सत्य भूषण वर्मा ने जापानी छंद विधाओं को भारतीय काव्य विधाओं के भीतर प्रवेश करवाया, उसी प्रकार इन काव्य विधाओं को सशक्त करने का और विभिन्न स्तरों पर प्रकाशन का, उनके प्रचार का महत्वपूर्ण कार्य भाई प्रदीप जी ने किया है। उनका लेखन ना सिर्फ हाइकु काव्य विधा, अपितु  तांका , सेदोका और कतौता काव्य विधा में भी निरंतर बना रहा है । वे इन छंद विधाओं के व्याकरण से भली भांति परिचित हैं ।इस क्षेत्र में उन्होंने समर्पित भाव से कार्य किया है । न सिर्फ बहुत सारी पुस्तकों का प्रकाशन किया है, अपितु कई सारे नव लेखकों को इन विधाओं के साथ जोड़ा है, जो अपने आपमें बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है ।
                श्री प्रदीप जी हिंदी भाषा के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी, ओड़िया, संबलपुरी आदि विविध लोक भाषाओं के भी लेखक के रूप में चर्चित रहे हैं । उन्होंने इन भाषाओं में भी बहुत कार्य किया है । विभिन्न सम्मानों से वे सम्मानित भी हुए हैं । इस सबके पीछे उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति है, जो उन्हें निरंतर सृजन के लिए प्रेरित करती रहती है ।
          प्रस्तुत संग्रह 'भावों की कतरन' उनका एवं हिन्दी का प्रथम कतौता संग्रह है । इस छंद विधा में 5-7-7 वर्ण की प्रतिबद्धता रहती है और इस प्रतिबद्धता का निर्वहन करते हुए उन्होंने एक चित्रकार की भांति काव्य रचनाओं को चित्रित किया है। उन्होंने ना सिर्फ प्रकृति के बिंब तैयार किए हैं, अपितु उनकी दृष्टि देश और समाज की प्रत्येक विकृति की ओर है । वह अपने पर्यावरण के प्रति चिंतित हैं । अपने देश के किसानों की तकलीफ उन्हें अपनी स्वयं की तकलीफ लगती है । प्रकृति का दुख उनका निजी दुख हो जाता है । काव्य रचना में वैसे भी रचनाकार का संवेदनशील होना बहुत जरूरी होता है और इनकी रचनाओं को देखकर उनके भीतर का संवेदनशील ह्रदय पाठक को महसूस होता है । वे एक भावनाओं से परिपूर्ण कवि हैं और इन रचनाओं में उन्होंने अपने अंतरंग को खोल कर विभिन्न भावों को रचा है। वे लिखते हैं -
कतौता संग  
भावों की कतरन
हुआ  मैं  अंतरंग ।

 जीवन को वह सजग निगाहों से देखते हैं । उम्र के साथ-साथ जीवन में जो परिवर्तन आते हैं, उन पर टिप्पणी करने से वह कभी नहीं चूकते ।
छीना सहारा
बूढ़ी आँखें बेकल
जीवन आज हारा ।

          उनके भीतर का कवि आशावादी है । वह अंधेरे में सदैव उजाले को खोजता है और जीवन की सार्थकता पर विश्वास करता है । समस्याओं का हल खोजने में उनका विश्वास है और यह विश्वास उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है।
नन्हा सा दिया
मिटाता अंधकार
रखना ऐतबार ।

  **
यकीन कर
समस्या सुलझेगी
खुद से मिला कर ।

            सृजन का यह धर्म होता है कि जीवन की नश्वरता को पहचानते हुए लेखन किया जाए । इसीलिए लिखने पढ़ने वाले लोग, भीतर से धीरे-धीरे आध्यात्मिक हो जाते हैं और जीवन के सत्य की खोज में लग जाते हैं।
मिट्टी से पूछ 
अंतिम शय्या यही
मत कर गुरूर ।

**
माटी की काया 
मरघट को जाना 
अंतिम ये ठिकाना ।

          पर्यावरण के प्रति भी कवि बहुत ही संवेदनशील है और अपने आसपास घटने वाली घटनाओं पर सदैव चिंता  व्यक्त करता रहता है ।
काटे हैं पेड़ 
अब कैसे सुनेंगे
बुलाने पर मेघ ।

**
बंजर जमीं 
कृषक की आँखों से 
बहता रहा पानी ।

**
धरा की पीर
समझते केवल
हवा, मिट्टी व नीर ।


           भूख और गरीबी, इनसे लड़ने की ताकत कवि के भीतर है। वह जीवन में विश्वास को खोजता है और खराब स्थितियों में से भी बाहर निकलने की दृढ़ इच्छाशक्ति रखता है ।
मुस्काया चूल्हा 
लकड़ी हुई राख
बुझी पेट की आग ।

**
मन में शोक 
भूख से बिलखते 
मरते यहाँ लोग ।

**
        रिश्तों के प्रति संवेदनशील कवि रिश्तों में सदैव खुशियों की खोज में लगा रहता है ।
हँसी बिटिया 
मन के आँगन में 
चहकी री.. चिड़िया ।

**
माँ की ममता 
प्रेम घट छलका 
अग-जग महका ।

         जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, कवि एक चित्रकार की भांति काम करता है । वह रंगों को  बिखेर देता है ।बिंबो का सृजन करता है । शिल्प की कसावट उनकी सारी रचनाओं में है ।
एक कंकड़ 
ताल हिलने लगा
भीतर व बाहर ।

**
चाँद के अश्रु 
कमल के पत्रों ने
सहेज लिए बिन्दु ।

**
वृक्ष के कक्ष 
नीड़ के सृजन में 
चिड़िया बड़ी दक्ष ।

**
खिला पलाश 
दहक उठा तन
जलने लगा वन ।

         इस वर्ष में समाज में स्त्रियों के प्रति अत्याचार के बहुत सारे मामले सामने आए हैं । स्त्री विमर्श एक ऐसा विषय है जिस पर लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। श्री प्रदीप जी भी स्त्री के प्रति अपनी चिंताओं को अभिव्यक्त करने में पीछे नहीं रहते और अपनी रचना में उस तकलीफ को अभिव्यक्त करते हैं ।

आहत मन
नोंचे यहाँ बागबाँ
अबोध कली तन ।

          कुल मिलाकर यह कहना चाहूंगा कि किसी छंद विधा में उसके व्याकरण का निर्वहन करते हुए रचना करना एक कठिन कर्म होता है, जिसे श्री प्रदीप जी ने इस पुस्तक में बड़ी कुशलता के साथ प्रस्तुत किया है । यह पुस्तक निश्चित रूप से इस विधा की पहली पुस्तक के रूप में सर्वमान्य होगी और सर्वत्र सराहना प्राप्त करेगी ।


28 दिसम्बर 2020

                                              सतीश राठी

                                 आर 451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर                                             पिन - 452010

                                     

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