हाइकुकार
प्रवीण कुमार दाश
हाइकु
नदी बहती
धरा खुश हो रही
पीड़ा निकली ।
नेह का बीज
उर की भूमि पर
फूटा अंकुर ।
मोती चुगता
क्षीर नीर विवेक
हंस सिखाता ।
बिटिया रानी
जाएगी पी के घर
हुई सयानी ।
जोड़ तू तृण
घोंसले चहकेंगे
सृजन पूर्ण ।
संत आगम
शिशिर अगुवानी
चली हेमंत ।
मेहंदी रची
गाल हो गये पीले
देखो चांद के ।
सूरज उगा
चाहत जीवन में
होता प्रभात ।
प्रकाश सोया
सज उठी बगिया
धूप की शैया ।
मेघ मुस्काया
तरबतर धरा
बीज हर्षाया ।
माँ की ममता
धरा बन सहती
प्रसव पीड़ा ।
ऑंखें युगल
काजल का श्रृंगार
मन सजल ।
राम का स्पर्श
धन्य हुई अहिल्या
शाप से मुक्ति ।
सूर्य की आग
अवनि की ओर में
बढ़ाए ताप ।
धरा की कोख
बीज बोता किसान
फल संतान ।
प्रकृति राह
शजर से जीवन
यही नियम ।
पौधे जीवन
वयता जड़ तन
प्रभु शरण ।
ताल में बड़
डटे अकड़ कर
जड़ पकड़ ।
लड़ती रही
बाधाएं पार कर
सरिता बढ़ी ।
खग चातक
स्वाति बूंद की आस
निहारे नभ ।
सुंदर वन
मोह लेते हैं मन
वृक्ष चंदन ।
प्रवासी पंछी
मन न लगा वहाँ
लौटा वतन ।
पंख सहारे
शीत से बचाती माँ
नन्हें चूजों को ।
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प्रवीण कुमार दाश
साँकरा, जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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