हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

रविवार, 28 फ़रवरी 2021

हाइकुकार प्रवीण कुमार दाश जी के हाइकु

हाइकुकार 

प्रवीण कुमार दाश 


हाइकु


नदी बहती 

धरा खुश हो रही 

पीड़ा निकली ।


नेह का बीज 

उर की भूमि पर 

फूटा अंकुर ।


मोती चुगता 

क्षीर नीर विवेक 

हंस सिखाता । 


बिटिया रानी 

जाएगी पी के घर 

हुई सयानी ।


जोड़ तू तृण

घोंसले चहकेंगे 

सृजन पूर्ण ।


संत आगम 

शिशिर अगुवानी 

चली हेमंत ।


मेहंदी रची 

गाल हो गये पीले 

देखो चांद के ।


सूरज उगा 

चाहत जीवन में 

होता प्रभात ।


प्रकाश सोया 

सज उठी बगिया 

धूप की शैया ।


मेघ मुस्काया 

तरबतर धरा 

बीज हर्षाया ।


माँ की ममता 

धरा बन सहती 

प्रसव पीड़ा ।


ऑंखें युगल 

काजल का श्रृंगार 

मन सजल । 


राम का स्पर्श 

धन्य हुई अहिल्या 

शाप से मुक्ति ।


सूर्य की आग 

अवनि की ओर में 

बढ़ाए ताप ।


धरा की कोख 

बीज बोता किसान 

फल संतान ।


प्रकृति राह 

शजर से जीवन 

यही नियम ।


पौधे जीवन 

वयता जड़ तन 

प्रभु शरण ।


ताल में बड़ 

डटे अकड़ कर 

जड़ पकड़ । 


लड़ती रही 

बाधाएं पार कर 

सरिता बढ़ी । 


खग चातक 

स्वाति बूंद की आस 

निहारे नभ । 


सुंदर वन 

मोह लेते हैं मन 

वृक्ष चंदन ।


प्रवासी पंछी

मन न लगा वहाँ 

लौटा वतन ।


पंख सहारे

शीत से बचाती माँ   

नन्हें चूजों को ।

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प्रवीण कुमार दाश 

साँकरा, जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

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