हाइकु कवयित्री
सरस दरबारी
हाइकु
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डोले पवन
गूँजे मंत्रोच्चारण
करे हवन ।
बर्फीले हिम
हवाएँ ठिठुराएँ
बिखेरें शीत ।
सुन्न सी टीसें
सर्द हवाएँ बन
दौड़ें रगों में ।
हवा से बाँटे
सुख दुख अपने
पीड़ाएँ छाँटे ।
माटी की गोद
करती आलिंगन
देती पनाह ।
मनुष्य तन
माटी से ही उपजा
माटी में लीन ।
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□ सरस दरबारी
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