हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

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शुक्रवार, 21 मई 2021

~ हाइकु कवयित्री डॉ. सुरंगमा यादव जी के हाइकु ~

हाइकु कवयित्री 

डॉ. सुरंगमा यादव 


हाइकु 

--0--


प्रेम की थाप

ढल गया आकार 

कच्ची थी माटी ।


माटी है एक

एक ही कुम्भकार 

नाना आकार । 


एक ही ज्योति

हर घट भीतर

कैसा अंतर !


प्रभु ने दिये

हमें प्राणों के दिये

जोत जगायें ।


निज को सार

और को माने थोथा

ऐसा क्यों होता ?


अपनी पारी

सुख-दुःख खेलते

आ बारी-बारी ।


तेल न बाती

निज दीपक बन

जलो संघाती ।


मिलीं खुशियाँ

सात्त्विक विचारों से

मिटी भ्रांतियाँ ।


कहे प्रकृति

'स्व'और 'पर' पर

हो समदृष्टि ।


प्रेम बढ़ाती

मन में निश्छलता

जब है आती ।

---00---


□  सुरंगमा यादव


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