हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

हिन्दी हाइकुओं में "किरेजी" प्रयोग

 

हिन्दी हाइकु में किरेजी / 切れ字 प्रयोग

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       शाब्दिक रूप से "कटिंग वर्ड" कुछ विशेष प्रकार के जापानी पारंपरिक कविता में प्रयुक्त शब्दों की एक विशेष श्रेणी के लिए शब्द है। इसे पारंपरिक हाइकु के साथ-साथशास्त्रीय रेंगा और इसके व्युत्पन्न रेन्कू ( हाइकाई नो रेंगा) दोनों के होक्कु या उद्घाटन कवितामें एक आवश्यकता के रूप में माना जाता है। अंग्रेजी में किरेजी का कोई सटीक समकक्ष नहीं है, और इसके कार्य को परिभाषित करना मुश्किल हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि यह पद्य को संरचनात्मक समर्थन प्रदान करता है। जब एक कविता के अंत में रखा जाता है, तो यह एक सम्मानजनक अंत प्रदान करता है, कविता को समापन की उच्च भावना के साथ समाप्त करता है। एक कविता के बीच में प्रयुक्त, यह संक्षेप में विचार की धारा को काट देता है, यह दर्शाता है कि कविता में दो विचार हैं जो एक दूसरे से आधे स्वतंत्र हैं। ऐसी स्थिति में, यह लयबद्ध और व्याकरणिक रूप से विराम का संकेत देता है, और इससे पहले के वाक्यांश को भावनात्मक स्वाद दे सकता है ।

         "किरेजि" cutting word हिन्दी में  'काटने वाला अक्षर' कह सकते हैं ...

   कुछ उदाहरण देखें-


नदी के तट

मिलने की उत्कण्ठा 

अह.. बेबस ।


~ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"


बंद संवाद

तड़पते हृदय

अह.. आकुल ।


किले फतह

करतीं लड़कियाँ

वा.. बेमिसाल ।


~ शर्मिला चौहान


केशव राह

तकती रही गोपी

आये न हाय..


दिल का दर्द

अनदेखा  ही रहा

हाय.. बेचैनी ।


~ निर्मला पांडेय

     

अश्रु की धार

अह.. री तड़पन

नेत्र के द्वार ।


~ अमिता शाह 'अमी'


एक संवाद

बनते बिगड़ते

ओह.. मिजाज ।


पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


अशक्त देह

बिलबिलाती भूख

उफ.. गरीबी ।


~ अंजुलिका चावला 


राह निहारूँ

ओह तुम न आये 

मन बेचैन ।


~ शीला तापड़िया 


जुगनू जले

शाम की महफिल

वाव...क्या बात ।


~ अविनाश बागड़े


जुल्फें खुलती

गज चाल उसकी

वाह.. सादगी ।


~ पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


अन्न ही ब्रह्म

कचरे में भोजन

धिक् रे इंसान !


~ अंजुलिका चावला 


रात सुहानी

रातरानी खिलती

वाह.. महक ।


परियां आती

सपने है सजाती

अहा.. मुस्कान ।


~ पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'


भूख का मारा

गरीबी ने जकड़ा

हाय बेचारा ।


~ रुबी दास


तन की पीड़ा

मन तक पहुंचे

हाय..क्या करें !


धूल का कण

आँख में लाए पानी

उफ..चुभन


~ अमिता शाह "अमी.."


उफ्फ ये इश्क

अंतस से उभरा

दर्द का लावा


~ अल्पा जीतेश तन्ना


मन  सहेजे

संवेदना के पल

अरे संभल ।


तन चंचल

निर्मल मन पटल

वाह शैशव ।


शक्ति अपार

चला पंख पसार

अहा यौवन ।


जर्जर काया

लगे व्यर्थ माया

आह बुढ़ापा ।


~ अंजुलिका चावला 


फिर लटका

कर्ज़दार किसान

हा!.. तक़दीर 


बच्चा अनाथ

तर्पण कर लौटा

ओह!... अभागा !


पूस की रात

हल्कू कुड़कुड़ाया

उफ़.. ये ठंड !


वासन्ती भोर

प्रकृति नटी हँसी

अहा!.. अहह!!


स्वार्थ पनपा

बढ़ते वृद्धाश्रम

धिक्... रे पूत ।


बुद्धि भ्रमित

चोट खाई,समझी

ओ!... ये बात है ।


~ सुधा राठौर


     यहाँ इन हाइकुओं में किरेजि शब्दों  के प्रयोग से भाव अधिक गहरे, दंशक या मारक हो गये हैं .....


     हिन्दी हाइकुओं में प्रयुक्त कुछ किरेजि शब्दों की सूची

ह..

हह..

अह..

अहह..

हाय..

ओ...

ओह..

आह..

अहा..

ओ.. हो..

धिक्..

वाह..

उफ..

छि..

थू..

अरे..

ओ.. रे..

काश..

     हाइकु में इन सभी शब्दों के प्रयोग, 'किरेजि' माने जाएंगे ।


*जापानी हाइकुओं में प्रयुक्त किरेजी की सूची*


か का : जोर; जब एक वाक्यांश के अंत में, यह एक प्रश्न को इंगित करता है ।


/ kana : जोर; आमतौर पर एक कविता के अंत में पाया जा सकता है, आश्चर्य दर्शाता है ।


- केरी : विस्मयादिबोधक मौखिक प्रत्यय, अतीत परिपूर्ण ।


/ - या -  : मौखिक प्रत्यय संभाव्यता दर्शाता है ।


- शि : विशेषण प्रत्यय; आमतौर पर एक खंड समाप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।


- त्सू : मौखिक प्रत्यय; पूर्ण वर्तमान ।


や फिर : पूर्ववर्ती शब्द या शब्दों पर जोर देती है। एक कविता को दो भागों में काटकर, इसका तात्पर्य एक समीकरण से है, जबकि पाठक को उनके अंतर्संबंध का पता लगाने के लिए आमंत्रित करना । 

'हाइकु' एक लघु काव्य विधा होने के कारण लंबी-लंबी पंक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है । यहाँ निश्चित 5-7-5 (17) अक्षरों में संपूर्ण भाव की  अभिव्यक्ति आवश्यक होती है । 'किरेजी' पंक्तियों को काटता है । भाव गुंफन हेतु हाइकु में 'किरेजी' महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इनके प्रयोग से रचनाकार अपने हाइकुओं में भावों की गहनता लाने हेतु पूर्ण सफल हो जाते हैं ।

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      -  प्रदीप कुमार दाश 'दीपक"

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