श्रवण कालवा
राजस्थानी हाइकु
पेलो सावण
लगाय दिणी लाय
केड़ो जोबण ।
घर आँगणो
लिपयोड़ो गोबर
हामीं बळद ।
तपता धोरा
बाटा नाळे दो आँखा
बरसो मेघा ।
घर आँगण
धूड़ो उडावतो ओ
आयो फागण ।
सुखोड़ा खेत
केर सांगरी अर
बळती रेत ।
हाथा रा छाला
खुरपी री मूठ आ
घणो तावड़ो ।
गांव शहर
बाट जोवे डोकरा
टूटा सबर ।
म्हारी घरनी
हूको लीलो जीस्यो है
काळ दोन्या रो ।
केड़ो जमाणों
मिनखपणो कठे
स्वार्थ में आँधो ।
किनणे केऊँ
पीड़ा रो समंदर
के समझाऊँ ।
थें परदेसां
किंवाड़ ओटे खड़ी
जोवे हैं बाटा ।
नाड़ी री पाळ
है संझया री भेळा
उतरे ढोर ।
चेत मानखा
मिनख सूं मिनख
डरे बावळा ।
सबणे खोयो
विश्वास आपणो ही
कठे ठिकाणो ।
लुगायां हांची
जबर बात कहीं
समझो कदी ।
कुण थूं बता
करमां रो लेख है
औकात कई ।
ऐ म्हारी बाता
सगळी सब साची
बाकी नाजोगा ।
--0--
~ श्रवण कालवा
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