हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

गुरुवार, 11 मई 2023

~ श्रवण कालवा जी के राजस्थानी हाइकु ~

श्रवण कालवा 


राजस्थानी हाइकु 


पेलो सावण

लगाय दिणी लाय

केड़ो जोबण ।


घर आँगणो

लिपयोड़ो गोबर

हामीं बळद ।


तपता धोरा

बाटा नाळे दो आँखा

बरसो मेघा ।


घर आँगण

धूड़ो उडावतो ओ

आयो फागण ।


सुखोड़ा खेत

केर सांगरी अर

बळती रेत ।


हाथा रा छाला

खुरपी री मूठ आ

घणो तावड़ो ।


गांव शहर

बाट जोवे डोकरा

टूटा सबर ।


म्हारी घरनी

हूको लीलो जीस्यो है

काळ दोन्या रो ।


केड़ो जमाणों

मिनखपणो कठे

स्वार्थ में आँधो ।


किनणे केऊँ

पीड़ा रो समंदर

के समझाऊँ ।


थें परदेसां

किंवाड़ ओटे खड़ी

जोवे हैं बाटा ।


नाड़ी री पाळ

है संझया री भेळा

उतरे ढोर ।


चेत मानखा

मिनख सूं मिनख

डरे बावळा ।


सबणे खोयो

विश्वास आपणो ही

कठे ठिकाणो ।


लुगायां हांची

जबर बात कहीं

समझो कदी ।


कुण थूं बता

करमां रो लेख है

औकात कई ।


ऐ म्हारी बाता

सगळी सब साची

बाकी नाजोगा ।

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~ श्रवण कालवा

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