हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका)

卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ हाइकु मञ्जूषा (समसामयिक हाइकु संचयनिका) संचालक : प्रदीप कुमार दाश "दीपक" ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐 ~•~ 卐

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

हाइकु मुक्तक

  ~ हाइकु मुक्तक ~


जग कल्याण / प्रभु अवतरित / आप श्रीराम ।

स्तब्ध चेतना / देख यह  आपका / न्याय प्रमाण ।

वियोग कष्ट / झेलती रही नारी / हुई विवश ,

मात के संग / चल पड़ी बिटिया / धाम प्रयाण  ।। 01 ।।

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परीक्षा नाम / नारी का अपमान / मर्यादा राम ।

देश-समाज / भटका देख कर / आपका काम ।

धरा की गोद / समाती रहीं सीता / देती परीक्षा ,

मनु उत्तम / पर धिक् दे न सके / नारी को मान ।। 2 ।।

   ✍प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

https://hindi.sahitapedia.com/हाइकु-मुक्तक-92930#

 

 

धन के नाते / बदल गये रिश्ते / अब राखी के ।

नहीं ठिकाने / बदले मौसम में / वनपाखी के ।

अपने पैरों / अब तक चलना / सीखें वे कैसे,

जिधर गये / पर साथ रहे हैं / वे वैसाखी के ।।

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"चलायें हम / इसी मझधार में / टूटा सफ़ीना ।

सहम कर / पत्थरों के जिस्म से / छूटे पसीना ।

कहाँ हमको / डिगा सकते हैं ये / तूफ़ान-आँधी,

अगर दिल / साफ है तो हैं यहीं / काशी-मदीना ।।"  

   ✍डाॅ. मिथिलेश दीक्षित

 

 

साल ये नया / हरारत भरी  है / हेमंती हवा ।

बदल रहे / सूरज के तेवर / दहकी  हवा ।

गर्म लिबास / मांग रहे बिदाई / छूटी रजाई ,

कोहरा छँटा / मुखरित भास्कर / खुल के हँसा ।।

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दरख़्त तले/मुँह छिपाने लगे/पेड़ों के साये

क्लान्त पखेरू/अपने ही परों में/सिमट आए

ढलती साँझ/लौट चला पथिक/थके पगों से,

डूबने चला/क्षितिज में सूरज/शीश झुकाए ।।

   ✍सुधा राठौर

 

 

तन्हा ये  मन / गाए गुनगुनाए / यादों के गीत ।

मिले -बिछड़े / जीवन की  राहों में / कितने मीत ॥

तुम यूँ  मिले /नयनों  से हो दूर / मन के पास,

थामना हाथ / समय की आँधी में / निभाना प्रीत ॥

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कही भी जाऊँ / परछाई चलती / तेरी यादों की ।

मन में घुली / मीठी सी ये मिसरी /  तेरी वादों की ।

मुस्कुरा उठी / मद्धिम  -सी रोशनी / सूरज बनी,

छोड़ना न साथ / है यही फ़रियाद / फ़रियादों की ।। 

✍कमला निखुर्पा 

 

 

 सँभले जब / पता चला हमको / क्यों टूटा मन ।

झूठे चेहरे/ पास खड़े थे जान / गया दर्पन ॥

हम अकेले/ नदी किनारे  संग / रोती लहरें,

कितनी व्यथा !/ चीरती धारा जाने/ सान्ध्य- गगन ।।

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ढूँढ़ा हमने / सपनों तक में भी / खोज न पाए ।

तुम तो सदा / हमारे थे फिर क्यों / हुए पराये ।

जान तो लेते /हम किस हाल में / जीते -मरते,

सब सन्देसे / खो गए गगन में/ हाथ न आए ॥     

    ✍रामेश्वर कांबोज "हिमांशु"

 

 बर्षा की बूँदें  /महकाएँ   सभी के  / ये अंतर्मन

यही बूँदें तो /है किसान के लिए /उसका  धन

धरा हो तृप्त /हर्षाए ,भर जाए /घर का कोना ,

नये वस्त्र से /सज जाएँगे अब /सभी  के तन।

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बरसे नैना /सावन  में प्रतीक्षा  / करे बहना

कब आएँगे/ भैया ,राह तके वो  / दिवस- रैना

बिन गलती / परदेस में  भेजा / काहे बाबुल ,

भैया मिलन  /नैना तरसे अब   /दुःख  सहना ।

                                         ✍रचना श्रीवास्तव

 

महँगी रोटी/ भूख न छोड़े जिद/ रोता निर्धन।

दवा न दारू/ अकुलाती खटिया/ टूटा है तन।

जूझे इज्जत/ पैबंद बहकते/ गिद्ध निगाहें,

भारी अंबर/ मन झोंपड़पट्टी/ आँखें सावन॥

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प्यासी तितली/ रंग बाग के गुम/ कैसा बसंत।

रूठी बिंदिया/ परदेस बुरा है/ आये न कंत।

फूल चिढ़ाते/ खोई सी विरहन/ बैरी बहार,

एकाकीपन/ दंड बने जीवन/ पीड़ा अनंत॥

                                     ✍कुमार गौरव अजीतेन्दु

 

   जलती रही / सुधियों की कंदील / तुम न आये ।

   सितारों वाली / रात ढलती रही / तुम न आये ।

   सावनी रात / सुलगती रहती / प्राण की बाती ।

   याद आती है / तुम्हारी प्यारी बातें / तुम न आये ।।


   फूल खिलेंगे / सुरभि बिखरेगी / मेरे गीतों की ।

   हियरा डोले / मीठा सा रस घोले / मेरे गीतों की ।

   होगे प्रभात / सुनहरी किरणें / आयेंगी धरा ,

   मन के बोल / हर अधरों पर / मेरे गीत की ।।

                                         ✍देवेन्द्र नारायण दास

 

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