अंजुलिका चावला
हाइकु
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सिहरे तन
करत बरजोरी
श्यामल घन ।
गगन अश्रु
लागी तन अगन
सन्तप्त मन ।
गरज घन
गुंजित अष्ट दिशा
मृदंग धुन ।
दूल्हा गगन
बुँदियाँ जयमाल
धरा दुल्हन ।
बुझा अगन
विकल पशु पक्षी
दे प्राण दान ।
करत स्नान
हरित परिधान
लाजत धरा ।
बहत जल
वीथिन कलकल
कीच सकल ।
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