हाइकु कवयित्री
पूनम मिश्रा "पूर्णिमा"
हाइकु
खिली पांखुरी
पंकज कुंज वन
कुसुम रस ।
उदासी भूल
किरणों की सलाई
पंछी कतार ।
स्वर्ग के सूत्र
मिलाती है भूलोक
कैसा संबंध ।
जल की छबि
स्तब्ध हुआ है कवि
बहती धारा ।
बौराए नभ
बादल नापे छोर
गर्जन शोर ।
शिशु अरुण
घुंघराली-सी लटें
चंचल ऊषा: ।
सूने निलय
सुवर्ण सा चितेरा
कौन हो तुम ?
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