हाइकु कवयित्री
स्वाति गुप्ता "नीरव"
हाइकु
देख जलद
मेंढक हैं टर्राये
बरखा आये ।
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बरसे पानी
सूखी धरा महकी
सौंधी खुशबू ।
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बारिश आए
पैजन सम बाजे
झिंगुर बोले ।
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खेत की डोली
कतार में बालाएँ
रोपा लगाएँ ।
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स्वाति नक्षत्र
बूंद की वह प्यासी
चातक पंछी ।
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जल शैलाब
बेबस बहे प्राणी
प्रकृति कोप ।
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पानी बरसा
पौधों में आई जान
मुस्काई धरा ।
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